Amazing Facts In Hindi : दोस्तों कभी भारतीय 40 करोड़ थे, आज 140 करोड़ हो गए। कभी ₹90 में 10 ग्राम सोना खरीद लिया करते थे, आज इतने में नकली गहने भी नहीं मिलेंगे। कभी ₹0.27 में एक लीटर पेट्रोल भरवा लिया करते थे, लेकिन आज उतने ही पेट्रोल के लिए ₹100 खर्च करने पड़ते हैं।
ये कुछ बातें हैं जो बताती हैं कि हम पिछले कुछ दशकों में कितना बदल गए हैं और ये बदलाव 1947 से 2024 तक आया है। तो दोस्तों आज के इस लेख में हम आपको 10 ऐसे ही बड़े बदलावों के बारे में बताएंगे। तो चलिए शुरू करते हैं बिना किसी देरी के।
1947 से 2024 तक भारत में आये हैं यह 10 बड़े बदलाव| Amazing Facts In Hindi
नंबर 10. रेलवे और सड़कें
दोस्तों , 16 अप्रैल 1853 को हमारे देश में पहली ट्रेन चली थी जिसने मुंबई से थाने के बीच 33.6 किलोमीटर का सफर तय किया था। उसके बाद रेलवे की पटरियां बढ़ती गई और रेलवे लोगों की लाइफलाइन बन गई। रेलवे को लाइफ लाइन इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि आज भी करोड़ों यात्री रोज अपनी मंजिल तक इसी से पहुंचते हैं।
1950 में ट्रेन से साल भर में 128 करोड़ से ज्यादा यात्री सफर करते थे, लेकिन अब इनकी संख्या 350 करोड़ से ज्यादा हो गई है। बात अगर रेलवे की कमाई की करें तो 1950 में रेलवे को यात्रियों से 98 करोड़ रुपए का रेवेन्यू मिलता था, जो 2021-22 में 39,000 करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया है।
हालांकि 201- 20 में रेवेन्यू 50,000 करोड़ से ज्यादा था। इतना ही नहीं 1951 में रेलवे हर एक किलोमीटर पर डेढ़ पैसा किराया वसूलती थी, लेकिन अब हर किलोमीटर पर ₹0.66 से ज्यादा किराया लगता है।
बात करें सड़कों की तो 1947 में जब भारत को आजादी मिली तब नेशनल हाईवे की कुल लंबाई लगभग 21378 किलोमीटर थी जो अब 1.4 लाख किलोमीटर से अधिक हो गई है। तो आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में अब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क है जिसकी कुल लंबाई लगभग 62 लाख किलोमीटर है।
यात्री यातायात का लगभग 87 परसेंट और माल यातायात का 60 परसेंट योगदान रोड ट्रांसपोर्ट से होता है। राष्ट्रीय राजमार्ग भारत में सड़क नेटवर्क का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये लगभग 40 परसेंट सड़क यातायात कैरी करता है।
नंबर 9. जनसंख्या
दोस्तों जब भारत आजाद हुआ था तब देश की आबादी 34 करोड़ के आसपास थी। 1951 में देश की पहली जनगणना हुई। उस वक्त हमारी आबादी लगभग 36 करोड़ थी। भारत के पास विविधता कल्चर साझा करने वाले 1 अरब से अधिक लोगों द्वारा रिजर्व एक समृद्ध विरासत है।
आज भारत 2024 में जनसंख्या के मामले में चीन से आगे निकल चूका है । दोस्तों, अगर मौजूदा रुझान जारी रहा तो भारत की जनसंख्या पुरी २१वीं सदी में टॉप पर रहेगी। 1947 में स्वतंत्रता के बाद भारत ने जनसंख्या में चार गुना वृद्धि का एक्सपीरियंस किया जो आज 1.40 बिलियन तक पहुंच गयी है ।
भारत की जनसंख्या प्रतिवर्ष 15 मिलियन की दर से बढ़ रही है और यह दुनिया में सबसे अधिक वृद्धि दर है। जहां चीन की जनसंख्या 1.4 अरब के आसपास है, इसके बाद नाइजीरिया और अमेरिका का स्थान है। भारत की वर्तमान फर्टिलिटी रेट प्रति महिला 2.3 जन्म है और पिछले दो दशकों से स्थिर बनी हुई है।
इस दर से 2050 तक भारत की जनसंख्या 1.8 अरब तक बढ़ने की उम्मीद है। किसी और चीज में भारत आगे निकले या न निकले, लेकिन किसी भी स्थिति में भारत को दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश बने रहने से कोई नहीं रोक सकता।
नंबर 8. धर्म
भारत के छह सबसे बड़े धार्मिक समूह, विभाजन के बाद से रिलेटिव स्टेबल बने हुए हैं। सबसे बड़ा बदलाव जो हुआ है, वह मुसलमानों की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी और हिंदुओं की हिस्सेदारी में गिरावट में हुआ है। 1951 और 2011 के बीच मुसलमानों की आबादी 4.4 पर्सेंटेज से बढ़कर 14.2 परसेंट हो गई, जबकि हिंदू 4.3 पॉइंट घटकर 79.8 पर्सेंट हो गए हैं।
1951 के बाद से प्रत्येक जनगणना में ईसाई भारत की आबादी का 2 से 3 पर्सेंट के बीच रहे हैं। हालांकि ऐसी चिंताएं हैं कि ईसाइयों की गिनती कम हो सकती है, लेकिन इस तरह की कम गिनती की सीमा निर्धारित करना मुश्किल है।
तीन पर्सेंट भारतीय हैं जो हिंदू धर्म, इस्लाम या ईसाई धर्म के अलावा अन्य धर्मों को मानते हैं, आजादी के बाद के दशकों में लाखों करोड़ों लोगों का रिप्रेजेंटेशन करने लगे हैं। सिख भारत का चौथा सबसे बड़ा धार्मिक समूह है।
1951 में सात मिलियन यानी 70 लाख फॉलोवर से बढ़कर 2011 में लगभग 21 मिलियन यानी कि 2.1 करोड़ हो गए। जबकि यह हिस्सा भारत की आबादी का दो पर्सेंट से कम है। बौद्ध और जैन एक समान पैटर्न दिखाते हैं।
पिछले कुछ दशकों में उनकी संख्या दोगुनी तिगुनी हो गई, जबकि उनकी हिस्सेदारी स्थिर बनी हुई है। दोनों ही भारत की जनसंख्या में एक पर्सेंट से कम की हिस्सेदारी रखते हैं।
नंबर 7. इंटरनेट
आजादी के बाद से भारत में इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ने एक लंबा सफर तय किया है। शुरुआती वर्षों में आईटी मुख्य रूप से गवर्नमेंट यूज और शिक्षा पर केंद्रित था।
हालांकि 1980 और 1990 के दशक में आईटी बुनियादी ढांचे पर सरकार के फोकस और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के उदय के कारण आईटी क्षेत्र तेजी से बढ़ने लगा। आज भारत दुनिया के लीडिंग आईटी डेस्टिनेशंस में से एक है।
भारतीय आईटी क्षेत्र लगभग 200 अरब डॉलर यानी कि 16 लाख करोड़ से अधिक का है और 40 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देता है। दोस्तों आईटी का भारत की अर्थव्यवस्था और समाज पर बड़ा प्रभाव पड़ा है।
इसने नौकरियां पैदा की हैं, निर्यात को बढ़ावा दिया है और लाखों भारतीयों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद की है। आईटी ने भारत को दुनिया से और अधिक जोड़ा है और इसने ग्लोबलाइजेशन को बढ़ावा देने में भी मदद की है।
नंबर 6. डॉक्टर्स, हॉस्पिटल्स
कोरोना ने बता दिया कि किसी भी देश के लिए मजबूत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर कितना जरूरी है। आजादी से अब तक हमारे देश के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है।
आजादी के समय देश में केवल 30 मेडिकल कॉलेज थे, लेकिन अब 700 से ज्यादा है। इतना ही नहीं आजादी के समय देश भर में 2014 सरकारी अस्पताल थे और अब इनकी संख्या 41,000 से ज्यादा हो गई है। डॉक्टरों की संख्या भी 13 लाख को पार कर चुकी है।
नंबर 5. गरीबी
दोस्तों , अनुमान के मुताबिक आजादी के वक्त देश के 25 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे थे, जो उस वक्त की आबादी का 80 पर्सेंट था। हमारे देश में 1956 के बाद से पॉवर्टी नंबर्स का हिसाब किताब रखा जाने लगा।
बी.एस. मिन्हास कमीशन ने योजना आयोग को अपनी रिपोर्ट दी थी, जिसमें अनुमान लगाया था कि 1956-57 में देश के 21 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे थे। गरीबी रेखा के सबसे ताजा आंकड़े 2011 के हैं।
इन आंकड़ों के मुताबिक देश की 27 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। यानी उस समय तक देश की 22 पर्सेंट आबादी गरीबी रेखा के नीचे आती थी। तो क्या आप लोग जानते हैं कि गरीब कौन होगा? इसकी डेफिनेशन भी सरकार ने तय कर रखा है।
इसके मुताबिक अगर शहर में रहने वाला व्यक्ति हर महीने एक हज़ार रुपए से ज्यादा कमा रहा है और गांव में रहने वाले व्यक्ति की हर महीने की कमाई ₹816 से ज्यादा है तो वह गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा।
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नंबर 4. परिवार में बच्चें
दोस्तों, हाल के दशकों में भारत की फर्टिलिटी रेट में तेजी से गिरावट देखने को मिली है। आज एवरेज भारतीय महिला के अपने जीवन काल में दो बच्चे पैदा करने की उम्मीद है। भारत की फर्टिलिटी रेट 1.6 जो संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे कई इकोनॉमिकली एडवांस देशों की दर से अधिक है।
लेकिन 1992 में 3.4 और 1950 में 5.9 की तुलना में बहुत कम है। देश के प्रत्येक धार्मिक समूह की फर्टिलिटी रेट में गिरावट देखी गई है जिसमें हिंदू आबादी और मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन माइनॉरिटी समूह शामिल हैं।
जैसे भारतीय मुसलमानों में कुल फर्टिलिटी रेट में गिरावट आई है जो 1992 में प्रति महिला 4.4 बच्चों से बढ़कर 2015 में 2.6 बच्चे हो गई है। यह सबसे हालिया वर्ष है जिसके लिए भारत के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे से धार्मिक डेटा में उपलब्ध है।
नंबर 3. मुद्रा
दोस्तों ,अमेरिका कई दशकों से दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बना हुआ है। यही कारण है कि अमेरिका की करंसी डॉलर की भी पूरी दुनिया में दादागिरी चलती है। हालांकि हमेशा ऐसी स्थिति नहीं थी।
एक समय था जब अपना रुपया भी डॉलर को टक्कर देता था, लेकिन बाद में स्थितियां बदलती चली गई और आज के समय में भारतीय रुपया वैल्यू के लिहाज से डॉलर के मुकाबले कहीं नहीं ठहरता। आखिर क्यों आजादी के बाद डॉलर के मुकाबले रुपया इस कदर कमजोर होता गया? गौर से देखें तो इसके लिए पांच प्रमुख कारण जिम्मेदार हैं।
सबसे पहले decimalisation ने रुपयों की वैल्यू गिराई। ये काम हुआ 1957 में, जब ₹1 को 10 पैसों में बांटा गया। इसके बाद 1966 के आर्थिक संकट ने एक झटके में रुपए की वैल्यू 57 परसेंट गिरा दी। 1991 के आर्थिक संकट ने अगला बड़ा योगदान दिया और उसके चलते रुपए की वैल्यू बहुत कम हो गई।
1991 के आर्थिक संकट और लिबरलाइजेशन के चलते डॉलर के मुकाबले रुपया 35 से नीचे चला गया। फिर साल 2013 में रुपए की वैल्यू में बड़ी गिरावट हुई। उस समय कई उभरती मुद्राएं डीवैल्यूएशन का शिकार हुई। अंत में 2016 की नोटबंदी ने भी रुपए की वैल्यू गिराने में योगदान दिया।
नंबर 2. सेना
26 जनवरी 1950 को देश में रिपब्लिक की घोषणा से दो साल चार महीने पहले 15 अगस्त 1947 को ही हमें आजादी मिली थी। आजादी ने हमें बंटवारे का जख्म दिया और भारत के दो टुकड़े हो गए। एक टुकड़े से पाकिस्तान बना, नवजात पाकिस्तान ने ठीक से पैर जमाना भी नहीं सीखा था, लेकिन कश्मीर पर हमला कर दिया।
यह अलग बात है कि उसने हमले की बात कभी मानी नहीं और आज भी यही कहता है कि हमलावर कबाइली थे, ना की पाकिस्तानी सेना के जवान। खैर भारतीय सेना ने उन हमलावरों को मुंहतोड़ जवाब दिया। दुनिया जानती है कि परिणाम क्या हुआ।
भारतीय मिलिट्री की ताकत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जब हमारे पास न तो कोई खास हथियार हुआ करते थे और न ही इतनी अच्छी मिलिट्री ट्रांसपोर्ट सर्विसेज, बस होती थी तो एक बंदूक जिसकी आगे की तरफ चाकू लगा होता था और मिलिट्री की ऐसी सर्विस जिसे पहुंचने में ही 1 से 2 दिन का समय लगता था।
लेकिन देश की तरक्की के साथ साथ ही मिलिट्री ने भी खूब तरक्की की है। आज हमारे देश के पास ऐसे ऐसे हथियार हैं जो हमारे दुश्मनों के छक्के छुड़ा सकते हैं। जैसे कि AK 203 एके सीरीज में AK 47 सबसे बुनियादी मॉडल है और AK 203 सबसे जटिल और नवीनतम हथियार मॉडल है जो भारतीय सेना के पास है।
पिस्टल नाइन एमएम लोकप्रिय बंदूक है जिसका इस्तेमाल भारतीय सेना में जमकर किया जाता है। उत्तर पूर्व में महत्वपूर्ण अभियानों से लेकर जम्मू कश्मीर में मुठभेड़ों तक यह हथियार अधिकारियों के लिए बेहद अहम है।
भारतीय सेना में और भी बहुत सारे हथियार शामिल हैं। अगर आप इनके बारे में जानना चाहते हैं तो कमेंट करके जरूर बताइएगा।
नंबर 1. जीडीपी
दोस्तों किसी भी देश की आर्थिक सेहत कैसी है, इसको जानने का पैमाना है जीडीपी यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट। ऐसा माना जाता है कि जब अंग्रेज भारत आए थे, तब दुनिया की जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी 22 पर्सेंट से ज्यादा थी, लेकिन जब वो छोड़ कर गए तो हिस्सेदारी घटकर तीन पर्सेंट पर आ गई।
आजादी के बाद से अब तक हमारी जीडीपी 50 गुना से ज्यादा बढ़ी है। 1950-51 में हमारी जीडीपी ₹4.96 लाख करोड़ थी, जो 2022-23 में 157 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा होने का अनुमान है।
निष्कर्ष (Amazing Facts In Hindi )
एक वक्त था जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। इसका कारण यह था कि हमारे देश में हर घर में सोना हुआ करता था। आज भी दुनियाभर में सबसे ज्यादा सोना भारतीय घरों में ही है। आज 10 ग्राम सोने की कीमत 60,000 के पार पहुंच गई है।
लेकिन जब हम आजाद हुए थे तब 10 ग्राम सोने की कीमत ₹90 भी नहीं थी। यानी अगर आज के हिसाब से तुलना करें तो आजादी के वक्त हम जितने 10 ग्राम सोना खरीद सकते थे आज उतने में एक लीटर पेट्रोल भी नहीं आता। तो दोस्तों यहां तक हमारे साथ बने रहने के लिए धन्यवाद।