ज्ञानवापी जिसका अर्थ है ज्ञान का कुआं अर्थात जहां कुएं में ज्ञान बसता है। कुआं शब्द का प्रयोग यहाँ उस कुएं के लिए किया गया है जिसे हम और आप अपनी आंखों से देख और समझ सकते हैं या फिर उस तहखाने के लिए जिसके लिए सनातन और हिन्दू पक्ष लड़ाई लड़ रहा है।
जहां काशी विश्वनाथ मंदिर में मस्जिद की ओर मुंह करके खड़ा नंदी सबकुछ कह रहा है मगर फिर भी सबूत तो देना ही पड़ेगा क्योंकि देश का लोकतंत्र बचाना है। मस्जिद की दीवार चीख चीख कर बहरे अंधों को आंखें खोलने और सच सुनने के लिए पुकार रही है।
पर सच क्या है? सच कोई सुनना भी चाहता है या फिर सच सुनने का ढोंग रचा जा रहा है? क्या है आखिर वह सबूत जिसके आधार पर अदालत ने तहखाने में पूजा का प्रबंध करने के अधिकार और बंदोबस्त करने का हुक्म जारी कर दिया है? सबूतों पर नजर डालने से पहले जानते हैं क्या है पूरा मामला और अब तक इस मामले में क्या हुआ है।
ज्ञानवापी का आधुनिक इतिहास
इतिहास की बात करेंगे तो यह लेख लंबा चला जाएगा तो इसलिए इसे आज के जमाने से ही शुरू करते हैं और जानते हैं उन तारीखों को जिन्होंने इस मामले को एक नया मोड़ दिया है और आज किस तरह से यह केस एक करवट बदल रहा है, जिसकी तुलना राम मंदिर मामले से की जा रही है कि यह मुद्दा भी राम मंदिर की तरह बिल्कुल उसी रास्ते पर चल पड़ा है।
दिसंबर 2019 में अयोध्या राम मंदिर फैसले के करीब एक महीने बाद वाराणसी सिविल कोर्ट में नई याचिका दाखिल करके ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कराने की मांग की गई। 2020 से वाराणसी के सिविल कोर्ट से मूल याचिका पर सुनवाई की मांग की गई।
2020 में ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिविल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाई और फिर इस मामले पर फैसला सुरक्षित रखा। 2021 से हाईकोर्ट की रोक के बावजूद वाराणसी सिविल कोर्ट ने अप्रैल में मामला दोबारा खोला और मस्जिद के सर्वे की अनुमति दे दी। जिसके ऊपर बहुत सारा बवाल भी देखने को मिला था।
2021 के समय मस्जिद इंतजामिया ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और हाईकोर्ट ने फिर सिविल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाई और फटकार भी लगाई। 2021 में ही अगस्त में पाँच हिंदू महिलाओं ने वाराणसी सिविल कोर्ट में श्रृंगार गौरी की पूजा की अनुमति मांगी और इसके लिए याचिका दाखिल कर ली गई।
2022 अप्रैल में सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करने और उसकी वीडियोग्राफी के आदेश दे दिए, जिसके बाद भी देश में काफी बवाल मचा था। मस्जिद इंतजामिया ने कई तकनीकी पहलुओं के आधार पर इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जो कि खारिज कर दी गई।
2022 में ही मस्जिद इंतजामिया ज्ञानवापी मस्जिद की वीडियोग्राफी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाती है, लेकिन यहां पर है सुप्रीम कोर्ट उन्हें वापस से हाई कोर्ट भेज देता है। 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू करने से पहले 16 मई को सर्वे की रिपोर्ट फाइल की गई और वाराणसी सिविल कोर्ट ने मस्जिद के अंदर इस इलाके को सील करने का आदेश दिया, जहां शिवलिंग मिलने का दावा किया गया था।
वहां नमाज़ पर भी रोक लगा दी गई। 2022, 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने शिवलिंग की सुरक्षा के लिए वजू खाने को सील करने का आदेश दिया, लेकिन साथ ही मस्जिद में नमाज जारी रखने की अनुमति दे दी। 2022 , 20 मई को सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला वाराणसी की जिला अदालत में भेज दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अदालत से यह तय करने के लिए कहा कि मामला आगे सुनवाई के लायक है या नहीं। 2023, 21 जुलाई को बनारस की अदालत ने दिया एएसआई सर्वे का आदेश दिया। 2023 में ही अगस्त के महीने में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सर्वे की अनुमति दे दी।
2024 में वाराणसी के जिला जज ने ज्ञानवापी की एएसआई सर्वे की रिपोर्ट मामले से जुड़े सभी पक्षों को सौंपने के आदेश दिए। वाराणसी की अदालत ने 31 जनवरी 2024 को बुधवार को हिन्दू पक्ष को ज्ञानवापी मस्जिद के व्यास तहखाने में पूजा का अधिकार दे दिया है।
कोर्ट के आदेश के बाद हिन्दू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने बताया, जिला प्रशासन को सात दिन के अंदर पूजा करने के लिए इंतजाम करने के लिए कहा गया है। हिन्दू पक्ष के वकील जैन ने इस फैसले की तुलना राम मंदिर के ताला खोलने के आदेश से की है और कहा है यह इस मामले का टर्निंग पॉइंट है।
यह भी पढ़ें :
भगवान हनुमान की 7 अनसुनी कहानियाँ जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
क्या आपको पता है राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में क्यों नहीं गए शंकराचार्य
जाने आखिर ईरान ने क्यों किया पाकिस्तान पर हमला
किला बन गई अयोध्या नगरी, राम मंदिर की सुरक्षा के लिए आया इजरायाली ड्रोन
क्या है तहखाने का रहस्य
हिन्दू पक्ष कुछ समय से ज्ञानवापी परिसर में मौजूद एक तहखाने में पूजा का अधिकार मांग रहा था। यह तहखाना मस्जिद परिसर में है। तो आइये जानते हैं उस तहखाने के बारे में जहां हिन्दू को पूजा करने का अधिकार मिला है।
अपनी याचिका में हिन्दू पक्ष ने दावा किया कि परिसर की दक्षिण दिशा में स्थित तहखाने की मूर्ति में पूजा होती थी। दिसंबर 1993 के बाद पुजारी श्री व्यास जी को ज्ञानवापी के बैरिकेड वाले क्षेत्र में घुसने से रोक दिया गया। इस वजह से तहखाने में होने वाले राग, भोग आदि संस्कार भी रुक गए।
हिन्दू पक्ष का दावा था कि राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने बिना किसी कारण तहखाने में पूजा पर रोक लगा दी थी। हिन्दू पक्ष का यह भी दावा है कि अंग्रेजी शासनकाल में भी तहखाने पर व्यास जी के परिवार का कब्जा था और उन्होंने दिसंबर 1993 तक यहां पर पूजा अर्चना की है।
हिन्दू पक्ष ने यह भी कहा कि तहखाने का दरवाजा हटा दिया गया और हिन्दू धर्म की पूजा से सम्बंधित सामग्री, प्राचीन मूर्ति और धार्मिक महत्व के अन्य सामग्री तहखाने में मौजूद है। हिन्दू पक्ष तहखाने में पूजा का अधिकार जताते हुए कहते हैं, आवश्यक है कि तहखाने में मौजूद मूर्ति की नियमित रूप से पूजा की जाए।
अपने मुकदमे में हिन्दू पक्ष ने एक रिसीवर को नियुक्त करने की मांग की है जो तहखाने में पूजा करवाने का प्रबंध करेगा। 17 जनवरी 2024 को हिन्दू पक्ष की मांग पर वाराणसी के जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश ने हिन्दू पक्ष की मांग को मानते हुए वाराणसी से जिला मजिस्ट्रेट को ज्ञानवापी मस्जिद में दक्षिण की तरफ मौजूद तहखाने जिसे विवादित संपत्ति भी कहा जाता है, का रिसीवर नियुक्त किया।
कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा, रिसीवर जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया जाता है कि वादग्रस्त संपत्ति को मजिस्ट्रेट अपनी अभिरक्षा में रखें और सुरक्षित रखें। उसके दौरान उसकी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होने दें।
कहां पर है व्यास जी का तहखाना।
पहले आपको बता दें कि जिस व्यास जी के तहखाने पर हिन्दू पक्ष पूजा अर्चना करने की मांग कर रहा है, आखिर वह परिसर नक्शे में कहां है। ज्ञानवापी से जुड़े 1936 के दीन मोहम्मद के मुकदमे में अदालत में दाखिल एक नक्शे में दक्षिण की तरफ है। अंग्रेजी में लिखा है व्यास के स्वामित्व में तहखाना।
सोमनाथ व्यास ने 1991 में ज्ञानवापी की मिल्कियत के दावे वाले जो वाद दाखिल किए थे, उसमें लगे नक्शे में भी दक्षिण में तहखाने का स्वामित्व वादी संख्या2 के नाम नजर आता है।
सोमनाथ व्यास की याचिका के नक्शे में इस तहखाने के ठीक सामने नंदी को दिखाया गया है और उसके दाएं और गौरीशंकर और बांयी तरफ बारादरी है, जिसके परिसर में व्यास जी की गद्दी, एक कुआं, पीपल का पेड़ और विनायक जी को दिखाया गया है और महाकालेश्वर को बारादरी से सटा हुआ दिखाया गया है।
नक्शे में ज्ञानवापी परिसर के इर्द गिर्द सारी जमीन पर हिन्दू पक्षकारों का कब्जा दिखाया गया है। दीन मोहम्मद के मामले में लगे हुए नक्शे में भी व्यास तहखाने के सामने नंदी, नंदीश्वर और उनके बगल में गौरी शंकर को दर्शाया गया है और बायीं तरफ बारादरी और ज्ञानवापी कूप का परिसर है। इसमें कुआं और पीपल का पेड़ भी मौजूद है।
1991 में सोमनाथ व्यास ने ज्ञानवापी की जमीन पर मालिकाना हक जताते हुए एक मूल वाद दाखिल किया था। तब सोमनाथ व्यास 61 साल के थे। पंडित सोमनाथ अपने आप को व्यास ज्ञानवापी परिसर में मौजूद गद्दी के पंडित बताते थे और अदालत में उन्होंने भगवान विश्वेश्वर का सखा बन कर ज्ञानवापी की जमीन पर अपना टाइटल सूट यानि कि हक दाखिल किया था।
उनका दावा था प्लॉट नंबर 9130 पर ध्वस्त किए गए आदि विश्वेश्वर के मंदिर का कुछ हिस्सा अब भी बाकी है और अपनी जगह मौजूद है। सोमनाथ व्यास ने अपनी याचिका में लिखा था कि दक्षिण में मौजूद तहखाना पूर्व में रहे मंदिर और उसकी जमीन 1991 उनके कब्जे में है।
इसमें यह भी दावा किया गया था कि हिन्दू यहां पूजा करते हैं और उसे आदि विश्वेश्वर का मंदिर मानकर उसकी परिक्रमा करते हैं।
सोमनाथ व्यास का दावा था क्योंकि यह तहखाना उनके कब्जे में है तो इससे साबित होता है कि पूरे प्लाट नंबर 9130 यानी ज्ञानवापी परिसर पर उनका कब्जा है और क्योंकि तहखाने की जमीन, उसके नीचे की मिट्टी उनके कब्जे में है तो इस तर्क से उसके ऊपर मौजूद ढांचे यानी मस्जिद पर मालिकाना हक भी उनका और हिन्दुओं का है।
7 मार्च 2000 को पंडित सोमनाथ व्यास का निधन हो गया और उसके बाद इस मामले में वादी नूमनेर पांच और अदालत में मुकदमा लड़ने वाले वकील विजय शंकर रस्तोगी स्वयंभू भगवान आदि विश्वेश्वर के सखा बन कर मुकदमा लड़ते आ रहे हैं।
मुस्लिम पक्ष का कहना कि जिस तहखाना में हिन्दू पक्ष पूजा करने का अधिकार मांग रहा है, उसमें व्यास नाम के परिवार के किसी शख्स ने कभी पूजा नहीं की है और इसलिए दिसंबर 1993 में तहखाने में पूजा रोकने का सवाल ही नहीं उठता।
मस्जिद पक्ष का कहना है कि तहखाने में कोई भी तथाकथित मूर्ति नहीं थी। मस्जिद पक्ष इस बात को भी असत्य बताता है कि अंग्रेजों के शासनकाल में व्यास परिवार तहखाने में पूजा करता था।
मस्जिद पक्ष का यह दावा है कि तहखाने में व्यास परिवार या किसी भक्त ने कभी कोई पूजा नहीं की और उस पर शुरू से ही मस्जिद अपना कब्जा बनाए हुए है। मस्जिद पक्ष का कहना है प्लॉट नंबर 9130 में ज्ञानवापी मस्जिद हजारों सालों से चली आ रही है।
तहखाना भी मस्जिद आलमगीरी यानी ज्ञानवापी का हिस्सा है। अपनी दलील में मस्जिद पक्ष 1937 के दीन मोहम्मद के फैसले का जिक्र करते हुए कहता है, उस मुकदमे के फैसले में यह घोषित किया गया कि मस्जिद, उसका प्रांगण और उसके साथ संलग्न भूमि हनीफा मुस्लिम वक्फ की है और मुसलमानों को उसमें नमाज का अधिकार है।
इस तहखाने के बारे में एएसआई क्या कहती है?
व्यास जी का तहखाना एएसआई की जांच के दायरे में नहीं था। इसलिए एएसआई ने ज्ञानवापी के दूसरे तहखानों की जांच की और उसके बारे में अपने निष्कर्ष दिए।
एएसआई के मुताबिक मस्जिद में इबादत के लिए उसके पूर्वी हिस्से में तहखाने बनाए गए हैं और मस्जिद में चबूतरा और ज्यादा जगह भी बनाई गई है ताकि इसमें अधिक से अधिक लोग नमाज पढ़ सकें। एएसआई कहता है कि पूर्वी हिस्से में तहखाने बनाने के लिए मंदिर के स्तंभों का इस्तेमाल किया गया है।
N2 नाम के एक तहखाने में एक स्तंभ का इस्तेमाल किया है जिस पर घंटियां, दीपक रखने की जगह और शिलालेख मौजूद हैं और N2 नाम के तहखाने में मिट्टी के नीचे दबी हुई हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां भी बरामद हुई हैं।
निष्कर्ष
तो मित्रों ,इसके बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या काशी विश्वनाथ मंदिर को भी अयोध्या राम मंदिर की तरह न्याय मिलेगा या फिर यह भी इसी तरह अदालतों के चक्कर काटता रहेगा और एक लंबे समय तक लड़ाई लड़नी पड़ेगी? क्या आप इस लड़ाई के लिए तैयार हैं? हमें कमेंट में जरूर बताइयेगा। हर हर महादेव।