आखिर कौन सी थी, हिन्दू महाकाव्यों की 5 सबसे शक्तिशाली मणियां. आखिर इन शक्तिशाली मणियों को किस किस देवता ने इस्तेमाल किया था और यह आज इस धरती में कहाँ पर छुपी हुई हैं यह मणियाँ .
पौराणिक कथाओं की मानी जाए तो हिन्दू महाकाव्यों में कई ऐसी चमत्कारी मणियों का ज़िक्र किया गया है जो बेहद ही शक्तिशाली थी. यह मणिया एक प्रकार की ऊर्जा का केंद्र था जो चमकते हुए पत्थर में समाहित होती है.
अगर आज के modern युग की बात करें तो आपने कई सारी science फिक्शन movies में इनके बारे में सुना ही होगा। मार्बल studio की अगर एंडगेम या इंफिनिटी war जैसी मूवीज को देखा जाए तो वहां पर भी कई सारे gems या stone का ज़िक्र मिलता है, जैसे समय मणि, आत्ममणि या शक्तिमणि इत्यादि.
हो ना हो marvel ने वही concept हमारे हिन्दू महाकाव्यों से उठाया है और इसीलिए आज के आर्टिकल में हम आपको बताएंगे, आखिर कौन सी है हिन्दू महाकाव्यों की पांच शक्तिशाली मणियां और इन मणियों का इस्तेमाल किस किस ने कब कब किया था, तो इसीलिए इस लेख के अंत तक अवश्य बने रहिए ताकि आपको भी यह खास जानकारी प्राप्त हो सके.
1.कौस्तुभ मणि
हमारे वेदों में, रामायण में , महाभारत में और कई सारे पुराणों में अलग अलग मणियों के बारे में लिखा गया है और उन्हीं के अनुसार जिस किसी के पास भी यह शक्तिशाली मणिया होती थी वह अपने आप में ही कई सारी शक्तियों का ऊर्जा का केंद्र अपने साथ लेकर चलता था.
यानी मणिधारक अपने आप में ही शक्तिमान होता था और इन्हीं शक्तिशाली मणियों में से पहली मणि थी कौस्तुभ मणि.
कहते हैं समुद्र मंथन के दौरान जो पांचवा रत्न समुद्र से निकला था, वह कौस्तुभ मणि ही थी और उस समय स्वयं भगवान नारायण ने ही कौस्तुभमणि को धारण किया था और उसके बाद उनके ही नर अवतार श्री कृष्ण ने कौस्तुभमणि को धारण किया था.
महाभारत में बताया गया है कि द्वापर युग के चरम में जब श्री कृष्ण ने गरुड़ देव से काल्यानाग की रक्षा की थी तब नाग ने श्रीकृष्ण को उपहार में अपने मस्तक की कौस्तुभमणि को भेंट किया था.
कौस्तुभमणि के बारे में यह भी माना जाता है की यह एक प्रकार की चमत्कारी मणि है जो इच्छाधारी नागों के पास पाई जाती है, जो उन्हें किसी भी प्रकार का रूप, रंग, आकार लेने के लिए शक्ति देता है.
इस मणि के अंदर कई सारी ऊर्जा का भंडार भी होता है. इसीलिए जो कोई भी कौस्तुभ मणि को धारण करता है तो वो अपने हिसाब से अपनी मनचाही शक्तियों को पा सकता है. इसीलिए कौस्तुभ मणि बेहद ही शक्तिशाली मणियों में से एक थी.
इस समय में कौस्तुभ मणि कहां है?
तो हमारे वेदों या पुराणों में इसका कोई भी सटीक वर्णन नहीं मिलता है. लेकिन कहा जाता है की जब द्वापर युग के अंत में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अपना देह त्यागा और द्वारका समुद्र में विलुप्त हो गयी तब वह ख़ास मणि भी समुद्र के तल की गहराइयों में द्वारका नगरी के साथ समा गई.
तो ऐसा भी संभव हो सकता है कि द्वारका नगरी जो स्वयं समुद्र के अंदर समाहित है शायद वही किसी अतल गहराइयों में आज भी वह कौस्तुभमणि पड़ी हो.
2. नागमणि
दूसरी शक्तिशाली मणि थी स्वयं नागमणि. जब भी नागमणि का ज़िक्र होता है तो माना जाता है कि नागमणि इच्छाधारी नागों के पास होती है और इसकी रौशनी बेहद ही तेज होती है. यह इतनी रोशनवान होती है कि स्वयं इसके सामने हीरे की चमक भी फीकी हो जाती है.
दरअसल नागमणि को ही नीलमणि भी कहा जाता है और पुराणों में ऐसे कई सारे नाग और नागमणियों का ज़िक्र भी किया गया है. कहते हैं स्वयं नागों के राजा वासुकि के पास नागमणि विद्यमान थी.
वहीं महाभारत की एक कथा में नागमणि के उपयोग का वर्णन भी किया गया है. दरअसल उलपी जोकि वासुकी और राजमाता, विशवाहिनी की दत्तक पुत्री थी. उन्होंने स्वयं अर्जुन से विवाह किया था.
जब अश्वमेध यज्ञ के समय अर्जुन स्वयं मणिपुर पहुंचे थे तो उनका सामना अपने ही पुत्र प्रभुवाहन से हुआ था जहां पर प्रभुवाहन ने अपने रण कौशल से स्वयं अपने ही पिता अर्जुन का वध कर दिया था. उसके बाद नागकन्या, उल्पी ने स्वयं नागमणि का ही इस्तेमाल कर कर अर्जुन को पुनः जीवित किया था.
नागमणि के बारे में यह भी कहा जाता है कि नागमणि के अंदर ऐसी शक्तियां विद्यमान होती है की वह एक मृत व्यक्ति के अंदर भी प्राण फूंक देती है.
नागमणि इस समय पर कहाँ पर मौजूद है?
तो दोस्तों कई सारी कथाओं में ये वर्णन आता है कि नागमणि को एक बार इस्तेमाल करने के बाद ये पुनः अपने ही स्थान पर लौट आती है, यानी कि स्वयं यह नागलोक में विद्यमान होगी, जो आपकी और मेरी सोच से बेहद ही दूर है.
3. अश्वत्थामा की मणि
अब बात करते हैं तीसरी शक्तिशाली मणि के बारे में, जो कोई और नहीं बल्कि अश्वत्थामा की मणि थी. शिव महापुराण के शत्रु रूद्र संहिता के सैंतीसवें खंड के अनुसार और साथ ही महाभारत में भी यह वर्णन मिलता है कि अश्वत्थामा को अमरता का श्राप मिला हुआ था, जो स्वयं उन्हें भगवान श्री कृष्ण के द्वारा मिला था.
जैसा के हम सब जानते हैं कि अश्वत्थामा स्वयं द्रोणाचार्य के पुत्र थे, जिन्हें द्रोणाचार्य ने महादेव की कठोर तपस्या करके प्रसन्न करके उन्हें प्राप्त किया था.
शिवजी के अंशपुत्र होने की वजह से अश्वत्थामा के पास शिवजी की ही कई सारी शक्तियां मौजूद थी और इन्हीं शक्तियों में से एक थी उनके मस्तक पर विराजमान एक अमूल्यमणि जो बचपन से ही उनके मस्तक में लगी हुई थी, जिसकी शक्ति से अश्वत्थामा, दैत्य, दानव, शंख, व्याधी, देवता और नागों को हरा सकते थे और इनकी शक्तियों से भी बच सकते थे.
और जब तक यह मणि अश्वत्थामा के पास थी तब तक कोई भी अस्त्र शस्त्र अश्वत्थामा को हानि नहीं पहुंचा सकता था. लेकिन महाभारत के अंत में जब दुर्योधन की मृत्यु हो गई तब उसके बाद स्वयं अश्वत्थामा का पांडवों के शतात मुकाबला हुआ था. जहां पर स्वयं भगवान श्री कृष्ण के श्राप से अश्वत्थामा को अमरता का श्राप मिला.
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4. स्वयमन्तक मणि
अब बात करते हैं अगली और चौथी शक्तिशाली मणि के बारे में जो कि थी, स्वयमन्तक मणि. स्वयमन्तक मणि एक दुर्लभ और आध्यात्मिक मणि है. इस मणि में एक सूक्ष्म शक्ति होती है जो स्वयं, अध्यात्मकता और सांसारिक प्रगति में सहायता देती है.
वही बहुत सारे इतिहासकारों का यह विचार भी है कि यह वही कोहिनूर का हीरा है जो कभी भारत की शान हुआ करता था. लेकिन सबसे पहले इस मणि का इस्तेमाल स्वर्ग के राजा इन्द्र ने किया था. इसके बाद इंद्रदेव ने इस मणि को स्वयं सूर्य देव को सौंप दिया था.
लेकिन इसके बाद सूर्य देव ने इस मणि को राजा सत्रहजीत को दे दिया था और सत्रहजीत के पास यह मणि उनके देवघर में सहेज कर रखी गई थी. लेकिन एक बार सत्रहजीत के भाई प्रसन्नजीत इस मणि को पहनकर जंगल में शिकार करने के लिए चले गए.
लेकिन जंगल में एक शेर ने प्रसन्नजीत पर हमला करके उनके घोड़े और उनको मार दिया और उनकी मणि को ले लिया. लेकिन जब रीछराज जामवंत जी ने शेर के पास उस मणि को देखा, तो उन्होंने शेर को मारकर उनसे यह मणि हासिल कर ली और अपनी पुत्री को खेलने के लिए मणि दे दी.
अब जब सत्रहजीत का भाई प्रसन्नजीत बहुत दिनों तक शिकार करके वापस नहीं आया, तब सत्रहजीत ने आसपास में अफवाह फैला दी की श्रीकृष्ण ने उनके भाई को मारकर समयमतक मणि को छीन लिया है, लेकिन श्रीकृष्ण ने अपने ऊपर इस लांछन को मिटाने के लिए अपने भाई बलराम के साथ मिलकर प्रसनजीत को वन में ढूंढने का निर्णय किया।
और ढूंढते ढूंढते उन्हें पता चला की एक शेर ने प्रसन्नजीत का वध कर दिया था और उन्हें खा लिया था. और उसी शेर को जामवंत जी ने मार दिया है. तब वह जामवंत जी की गुफा पर पहुंचे और उन्होंने जामवंती को मणि से खेलते हुए देखा, लेकिन श्रीकृष्ण को देखते ही जामवंत जी श्री कृष्ण से युद्ध करने लगे और ये युद्ध इक्कीस दिनों तक चला.
जब श्री कृष्ण और जामवंत जी का युद्ध खत्म नहीं हुआ, तब जामवंत जी को स्मरण हुआ कि श्री कृष्ण कोई और नहीं बल्कि उनके प्रभु भगवान श्रीराम ही का अवतार है. तब उन्होंने स्वयं अपनी पुत्री जामवंती का विवाह भगवान श्री कृष्ण से कर दिया था और उस मणि को दहेज़ के रूप में उन्हें दे दिया.
तब इस मणि को श्री कृष्णा ने सत्रह जीत के पास आकर उन्हें वापस दे दिया. लेकिन सत्रह जीत बहुत ही लज्जित हुए, क्योंकि उन्होंने श्रीकृष्ण पर लांछन लगाया था. इसीलिए अपनी इसी गलती के लिए उन्होंने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर दिया और वह मणि भगवान श्री कृष्ण को दे दी.
लेकिन श्रीकृष्ण मणि की महिमा को जानते थे और उसी लिए उन्होंने यह मणि सत्रहजीत को वापस कर दी. लेकिन इसके बाद यह मणि कहां गई इस बारे में कोई भी जानकारी हमारे वेद पुराण ग्रंथों में कहीं पे भी नहीं मिलती है.
लेकिन इस मणि के बारे में यह कहा जाता है कि यह मणि विनाश का कारण भी बनती है. इसीलिए कहा भी जाता है कि जब भी यह मणि किसी भी राजा के पास गई उसका राजा कुशल और बहुत ही सामर्थ्यवान तो बना लेकिन जल्द ही उनका काल भी आया.
और शायद यही कारण है कि जब यह मणि भगवान श्री कृष्ण के पास रही तब शायद इसी मणि की वजह से श्री कृष्ण और उनकी पत्नी जामवंती के पुत्र साम भी श्री कृष्ण के कुल के विनाश का कारण बने थे.
5. चंद्रकांता मणि
अब बात करते हैं आखिरी और शक्तिशाली मणि जिसे चंद्रकांता मणि या फिर शिवमणि भी कहा जाता है. यह मणि बेहद ही शक्तिशाली मानी जाती है.
सुश्रुत संहिता में एक ऐसी मणि का ज़िक्र किया गया है जिसकी सहायता से चाँद की किरणों से उपचार किया जाता है और इसी चंद्रकांता मणि को चाँद की रौशनी में रखने पर इसमें जल टपकने लगता है, जो कई तरह से कई सारे असाध्य रोगों का इलाज करने के लिए सक्षम होता है, तो इसे एक तरह का healing gem भी कह सकते हैं.
माना जाता है कि यह मणि आज झारखंड के बैजनाथ मंदिर में रखी हुई है. हमारे हिन्दू महाकाव्यों में इस बात का वर्णन भी मिलता है कि जब रावण ने स्वयं भगवान शिव से विनती की कि वह उनके साथ लंका चले, तब भगवान शिव स्वयं एक लिंग के रूप में परिवर्तित हो गए और कहा कि इस लिंग को कहीं पे भी ज़मीन पे मत रखना.
ऐसे में रावण को जल्द ही लघु शंका लगी और यह भी देवों की ही खास चाल थी जिसकी वजह से उन्होंने स्वयं उस लिंग को धरती में स्थापित कर दिया और वही कहलाया बैजनाथ धाम कहते हैं वहीं पर वह मणि आज भी मौजूद है.
ऐसा माना जाता है कि यह मणि जिस किसी के पास भी होती है ना केवल उसके भाग्य बदल जाते हैं, बल्कि उसकी अकाल मृत्यु भी नहीं होती है और उसकी किस्मत के सितारे बुलंद हो जाते हैं.
साथ ही वह रोग दोष सबसे दूर रहता है. कहते हैं इस मणि का संबंध सीधा चन्द्रमा से है और यह जिस किसी के पास भी होती है उसका जीवन भी चन्द्रमा की तरह चमकता ही रहता है. जैसे कि हम सब जानते हैं कि चंद्रमा स्वयं भगवान शिव धारण करते हैं, ऐसे में इस मणि को शिवमणि भी कहा जाता है.
तो दोस्तों, यह थी हिन्दू महाकाव्यों में वर्णित पांच शक्तिशाली मणियां जिनके बारे में हमने आपको विस्तार से बताया है, तो, इनमे से आपको सबसे शक्तिशाली मणि कौन सी लगी, comment box में हमें अवश्य बताइएगा.