अयोध्या श्री राम की नगरी जहां से शुरुआत हुई रामायण की एक ऐसी कथा जो भारतवर्ष के इतिहास की पहचान है। क्या आप जानते हैं कि श्रीराम की एक बहन भी थी और कुंभकर्ण छह महीने तक क्यों सोता था? या यह कि रावण की पत्नी मंदोदरी जन्म से एक जानवर थी।
अयोध्या से लेकर चित्रकूट तक, रामेश्वरम से लेकर लंका तक हर जगह रामायण की कहानियां हैं जिन्हें यह दुनिया सदियों से सुनती आई है। जिसमें अनेकों किरदार रामायण में छुपे हैं। तो आइये जानते हैं कुछ अनकहे किरदार और उनसे जुडी कुछ अनसुनी कहानियां।
1. सूर्पनखा
ऋषि विसर्प और राक्षसी कैकसी की सबसे छोटी बेटी और रावण की बहन मीनाक्षी जिसे आगे चलकर सूर्पनखा के नाम से जाना गया। सूर्पनखा यानी लंबे नुकीले नाखूनों वाली।
हम अक्सर सुनते हैं कि सूर्पनखा श्रीराम और लक्ष्मण जी को देखकर उनकी ओर आकर्षित हो गई। लेकिन रामायण के कुछ संस्करण के अनुसार इस आकर्षण की आड़ में छुपी थी बदले की आग जो सूर्पनखा रावण से ले रही थी। लेकिन आखिर ऐसी क्या बात थी कि सूर्पनखा अपने भाई के खिलाफ चली गई।
जब सूर्पनखा जवान हुई तो दानव दुष्ट बुद्धि के प्यार में पड़ गयी। दुष्ट बुद्धि कालकेय दानवों का राजा था। उन दोनों ने भागकर शादी कर ली। यह बात जब रावण को पता चली तो वह गुस्से से आग बबूला हो उठा। क्योंकि दानवों और असुरों के बीच सदियों से दुश्मनी चली आ रही थी।
रावण हैरान था कि आखिर दानवों के राजा होने के बाद भी दुष्ट बुद्धि सूर्पनखा से शादी कैसे कर सकता है जो सूर्पनखा की आड़ में रावण की मृत्यु का षडयंत्र रच रहा था। रावण ने दुष्ट बुद्धि के राज्य पर हमला बोल दिया और उसकी हत्या कर दी।
पति की मृत्यु होने पर सूर्पनखा बहुत दुखी हुई और इसी कारण उसके मन में अपने भाई के खिलाफ नफरत बढ़ने लगी। यही कारण था कि उसने रावण के मन में सीताजी को पाने की इच्छा जगाई और रावण की मृत्यु और उसके परिवार के विनाश के साथ सूर्पनखा ने अपने पति की हत्या का बदला लिया।
रामायण में सूर्पनखा की कहानी सीता माता के अपहरण से पहले ही खत्म हो जाती है, लेकिन श्रीराम और रावण को एक दूसरे के सामने लाकर खडा करने में सूर्पनखा का बहुत बड़ा हाथ था।
ना ही वह रावण के सामने जाकर सीताजी की खूबसूरती का गुणगान करती, ना ही सीता जी का अपहरण होता और ना ही लंका का यह भीषण युद्ध होता।
2. कुंभकरण
रामायण का एक ऐसा राक्षस जो छह महीने लगातार सोता था और फिर उठने के बाद छह महीने लगातार खाता था, वह था रावण का छोटा भाई कुंभकरण। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुंभकरण लगातार छह महीने तक सोता क्यों रहता था?
इसका कारण था एक श्राप। वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड के अनुसार जन्म होते ही कुंभकरण ने संसार में तबाही मचानी शुरू कर दी। वो हर रोज हजार से भी ज्यादा जीव जंतुओं को खा जाता था।
जब देवराज इंद्र को इस बारे में पता चला तो वह कुंभकरण को सबक सिखाने पहुंचे। लेकिन कुंभकरण इतना विशाल था कि उसने इंद्र देव के वाहन ऐरावत का ही दांत तोड़कर इंद्र पर ही वार कर दिया इस बात की शिकायत लेकर देवराज इंद्र सभी देवताओं के साथ ब्रह्मा जी के पास पहुंचे।
ब्रह्मा जी समझ गए कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो यह संसार जल्द ही खत्म हो जाएगा। वह कुंभकरण के पास पहुंचे और उसे श्राप दिया आज से तुम एक मृत इंसान की तरह सोते रहोगे। जब रावण को इस बारे में पता चला तो वह ब्रह्मा जी के पास पहुंचा।
उसने ब्रह्मा जी से कुंभकरण के श्राप को कम करने की प्रार्थना की। ब्रह्मा जी मान गए और श्राप को छह महीने के लिए सीमित कर दिया।
अब छह महीने सोने के बाद कुंभकरण एक दिन के लिए उठता था और तब तक खाता था जब तक उसकी भूख मिट नहीं जाती थी और फिर छह महीने के लिए गहरी निद्रा में सो जाता था।
कुंभकरण बहुत सारी शक्तियों के साथ जन्मा था, लेकिन अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करने के कारण इन शक्तियों के होते हुए भी वह केवल एक ऐसा राक्षस बनकर रह गया जिसका उदाहरण आज एक आलसी इंसान के रूप में दिया जाता है।
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3. मंदोदरी
रावण की पत्नी और लंका की महारानी मंदोदरी जिनका जन्म एक मेंढकी के रूप में हुआ था। रामायण के उत्तरकांड के अनुसार मंदोदरी असुरों के राजा मायासुर और देवलोक की अप्सरा हेमा की बेटी थी।
लेकिन उडिय़ा धर्म पुराण के अनुसार मंदोदरी जन्म से कोई कन्या नहीं बल्कि एक मेंढक थी। एक बार मंदार और उधर नाम के दो ऋषि जो दूध पीने वाले थे उसको एक सांप ने जहरीला बना दिया।
ऋषि मुनियों को मृत्यु से बचाने के लिए एक मेंढक ने उनके दूध में छलांग लगा दी। उन दोनों ने बिना इस बात को समझे उस मेंढकी को श्राप दे दिया और वह एक सुंदर कन्या में बदल गई जिसे वेगवती का नाम दिया गया।
वेगवती की खूबसूरती के चर्चे चारों ओर फैल गए और उसे पाने के लिए किष्किंधा के राजा बाली और लंकापति रावण में युद्ध हुआ दोनों ने वेगवती को अपने पूरे बल के साथ अपनी ओर खींचना शुरू किया। रावण और बाली दोनों महाशक्तिशाली थे।
तो अब आप ही सोचिए कि उनका बल कितना ज्यादा होगा। और इस खींचतान में वेगवती का कोमल शरीर बीच से चीर गया और उसके शरीर के दो टुकड़े हो गए। तब यमराज और वायुदेव ने मिलकर उनके शरीर को फिर से जोड़ा और फिर ऋषि मंदार और उदर के नाम को मिलाकर उनका नाम पड़ा मंदोदरी।
हमारे पुराणों में मंदोदरी को पांच कन्या में से एक माना जाता है। पांच कन्या द्रौपदी, कुंती, अहल्या, मंदोदरी और तारा। ऐसी पांच महिलाएं जिन्हें हमारे पुराणों में काफी सम्मान दिया गया है। भले ही मंदोदरी एक राक्षस की पत्नी थी लेकिन फिर भी उन्होंने अच्छाई का साथ कभी नहीं छोड़ा।
उन्होंने हर पल रावण को समझाया कि अपनी जिद छोड़कर माता सीता को मुक्त कर दें। वह जानती थी कि भले ही रावण कितना ही शक्तिशाली हो, श्रीराम से नहीं जीत पाएगा। लेकिन रावण अपनी बात पर अड़ा रहा और उसकी यही जिद उसकी मृत्यु का कारण बनी।
4. शांता
पूरा संसार श्रीराम को राजा दशरथ के बड़े बेटे के रूप में जानता है, लेकिन श्रीराम से भी पहले राजा दशरथ की एक बेटी थी, जिनका नाम रामायण में लिया तो गया है लेकिन उनके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते।
राजा दशरथ और माता कौशल्या की पहली पुत्री और श्रीराम की बडी बहन शांता। लेकिन उनका नाम रामायण में इतना महत्वपूर्ण होने के बाद भी गुम क्यों हो गया?
वाल्मीकि रामायण के बालकांड के अनुसार एक बार अंगदेश के राजा रोमपद और उनकी पत्नी वर्षिणी अयोध्या पहुंचे। रोमपद राजा दशरथ के बहुत अच्छे दोस्त थे और वर्षिणी माता कौशल्या की बडी बहन थी।
मजाक मजाक में वर्षिणी ने राजा दशरथ से उनकी पुत्री को मांग लिया। तब उनकी कोई संतान नहीं थी। राजा दशरथ उनका यह दुख समझते थे और इसीलिए उन्होंने यह बात स्वीकार कर शांता को गोद देने का वचन दे दिया।
अब क्योंकि रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाए तो राजा दशरथ ने अपनी प्राण से प्यारी बेटी शांता को राजा रोमपद को सौंप दिया।
राजा रोमपद शांता से बहुत प्यार करते थे। एक बार शांता से बात करने में वह इतना खो गए कि उन्होंने द्वार पर आए एक ब्राह्मण को नजरअंदाज कर दिया। वो ब्राह्मण इंद्रदेव के भक्त थे। उनके इस अपमान से इंद्र देव बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने रोमपद को सजा देने का फैसला किया।
कुछ समय बाद अंगदेश में भयंकर अकाल पड़ा। आकाल से उबरने के लिए और इंद्रदेव को मनाने के लिए राजा रोमपद ने ऋषि श्रृंगी को यज्ञ के लिए बुलाया। यज्ञ के बाद अंगदेश में आकाल समाप्त हुआ।
सबने इस बात के लिए ऋषि श्रृंगी का आभार माना और उन्हें सम्मानित करने के लिए शांता का विवाह उनके साथ करा दिया। आगे चलकर इन्हीं ऋषि द्वारा किए गए यज्ञ से श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघन का जन्म हुआ।
देवी शांता का जन्म हुआ तो रघुकुल में था लेकिन राजा रोमपद के गोद लेने के बाद उनका यह महत्वपूर्ण स्थान रामायण के बालकांड तक ही सीमित रह गया।
5. लक्ष्मण जी
लक्ष्मण जी जिन्होंने अपना पूरा जीवन श्री राम की सेवा में बिता दिया, लेकिन श्रीराम के दिए गए एक वचन के कारण उन्हें इस धरती को त्याग कर जल समाधि लेनी पड़ी।
पद्मपुराण के अनुसार कई सालों तक अयोध्या पर राज करने के बाद एक दिन श्रीराम के दरबार में एक साधु आए। उन्होंने श्रीराम से कुछ देर बात की और फिर वो दोनों अकेले में बात करने के लिए कमरे में चले गए।
श्रीराम ने लक्ष्मण जी को आदेश दिया कि किसी को भी अंदर न आने दिया जाए। अगर ऐसा हुआ तो लक्ष्मण जी को मृत्युदंड दिया जाएगा। लेकिन आखिर ऐसी क्या बात थी जिसे यह साधु किसी को नहीं सुनाना चाहते थे।
दरअसल यह साधु कोई मामूली ऋषि नहीं थे, बल्कि स्वयं यमराज थे, जो श्रीराम को यह याद दिलाने आए थे कि अब इस धरती पर उनका कार्य पूरा हो गया है और अब उनके वैकुंठ लौटने का समय आ गया है।
लेकिन यमराज ने श्रीराम से यह वचन लिया था कि उनके बीच हो रही बात को कोई और न सुने। इसी दौरान ऋषि दुर्वासा वहां पधारे। दुर्वासा ऋषि के भयंकर क्रोध के कारण बड़े बड़े देवता भी उनसे डरते थे।
लेकिन श्रीराम की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण जी ने उन्हें भी दरवाजे पर ही रोक लिया। ऋषि दुर्वासा बहुत क्रोधित हो गए। उन्होंने चेतावनी दी कि इस अपमान के बदले वह श्रीराम को श्राप दे सकते हैं।
लक्ष्मण जी जो अपने भाई से अनंत प्रेम करते थे, यह बात सुनकर घबरा गए। श्रीराम को श्राप से बचाने के लिए उन्होंने खुद का त्याग करना सही समझा और कमरे के अंदर चले गए।
लक्ष्मण जी को यूं अचानक देखकर श्रीराम सारी बात समझ गए, लेकिन उनका वचन टूट गया। यमराज ने श्रीराम से कहा कि लक्ष्मण जी को देश निकाला दिया जाए, क्योंकि श्रीराम से दूर रहना उनके लिए किसी मृत्युदंड से कम नहीं था।
लक्ष्मण जी जिनके जीवन का महत्व श्रीराम से था, यह बात सह नहीं पाए और उन्होंने सरयू नदी में जाकर जल समाधि ग्रहण की और अपने शरीर का त्याग कर दिया और वैकुंठ में अपने शेषनाग रूप में प्रभु के लौटने का इंतजार करने लगे। श्रीराम के प्रति लक्ष्मण जी का यह प्रेम और समर्पण ही उन्हें राम जी के साथ एक करता है।
निष्कर्ष
तो मित्रों , ये थे कुछ ऐसे किरदार जिनकी कहानियां मूल रामायण में ज्यादा डिटेल्स में नहीं बताई गयी है। अगर आप ऐसे किसी किरदार के बारे में जानते हैं तो हमें कमेंट में जरूर बताइएगा।मिलते हैं अगले किसी और लेख में तब तक के लिए जय श्री राम।