सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना|| संकट मोचन महाबली हनुमान जिनका नाम मात्र लेने से भी सभी कष्ट दूर हो जाते हैं, वह श्री राम के सबसे बड़े भक्त है और समय के अंत तक इस धरती पर धर्म के रक्षक भी। हनुमान जी को भगवान शिव का अंश कहा जाता है।
अगर हम आपसे यह कहे कि एक बार हनुमान जी और शिव जी के बीच एक बहुत भीषण युद्ध हुआ था और हनुमान जी जन्म से भी पहले श्रीराम जी से जुड़े हुए थे तो आपको कैसा लगेगा? हनुमान जी से जुड़ी कई ऐसी कहानियां हैं जिनके बारे में शायद ज्यादा लोग नहीं जानते।
पहली कथा
हनुमान जी वानरराज केसरी और देवी अंजना के पुत्र थे यह बात कौन नहीं जानता। पर क्या आप जानते है कि देवी अंजना पहले अप्सरा थी जिनका नाम था पुंजिकस्थला।
लेकिन एक बार ऋषि दुर्वासा जब इंद्रदेव की सभा में उनसे कुछ बात कर रहे थे तो पुंजिकस्थला कई बार उनके सामने से गुजरी जिससे उनका ध्यान भटक रहा था।
दुर्वासा ऋषि ने क्रोध में आकर पुंजिकस्थला को श्राप दे दिया कि उनका जन्म धरती पर होगा और वह भी वानर रूप में। इसके बाद ही पुंजिकस्थला का जन्म देवी अंजना के रूप में हुआ और वानरराज केसरी से उनका विवाह हुआ। धरती पर उन्होंने कड़ी तपस्या की और वायुदेव के आशीर्वाद से हनुमान जी को जन्म दिया।
दूसरी कथा
हनुमान जी के जन्म से जुड़ी एक और ऐसी कहानी है जिसे ज्यादा लोग नहीं जानते। हनुमान जी अपने जन्म से भी पहले श्री राम से जुड़े हुए थे।
आनंद रामायण के सार कांड के अनुसार जब राजा दशरथ ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ किया था तब अग्निदेव ने प्रकट होकर उन्हें प्रसाद में खीर दी थी। इस खीर को तीनों रानियों में बांट दिया गया था।
लेकिन माता कैकेयी को जो खीर का हिस्सा मिला था उसे एक चील छीनकर ले गई थी। जब वह चील अंजनी पर्वत के ऊपर से जा रही थी तो उससे वह खीर गिर गई और देवी अंजना को मिल गई।
उन्होंने उस खीर को खा लिया और उसके बाद हनुमान जी का जन्म हुआ। जहां एक तरफ आशीर्वाद में मिली खीर से श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघन का जन्म हुआ वहीं दूसरी तरफ महाबलशाली हनुमान जी इस धरती पर आए।
तीसरी कथा
हनुमान जी के अनेकों नाम हैं पर बचपन से लेकर आज तक हमने जितनी भी कहानियां सुनी और देखी हर जगह बजरंगबली को हनुमान जी कहा जाता है। लेकिन यह नाम उन्हें जन्म से नहीं मिला था। हनु यानी ठुड्डी या जबड़ा।
वाल्मिकी रामायण के किष्किंधा कांड के अनुसार बचपन में जब हनुमान जी ने धरती से सूरज को देखा तो उन्हें लगा कि वह एक पका हुआ फल है। उन्हें उस फल को खाने का मन करने लगा और उन्होंने सूरज को खाने के लिए उसकी दिशा में उड़ान भर दी।
जब इंद्रदेव ने हनुमान जी को स्वर्ग की ओर बढ़ते देखा तो वह बहुत क्रोधित हो गए। जब हनुमान जी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी तो इंद्रदेव ने उन पर अपने वज्र से प्रहार कर दिया। उसका असर इतना तेज था कि हनुमान जी बेहोश हो गए और धरती की ओर गिरने लगे।
जब पवनदेव ने अपने पुत्र को इस हालत में आसमान से गिरते हुए देखा तो उन्हें लेकर वह पाताल लोक चले गए। पवनदेव बहुत क्रोधित थे, दुखी थे। उन्होंने पूरे ब्रम्हांड की हवा को रोक दिया। सभी जीवों का दम घुटने लगा और धरती पर हाहाकार मच गया।
तब जीवन को बचाने के लिए और धरती पर हवा को वापस लाने के लिए सभी देवी देवताओं ने पाताल लोक जाकर हनुमान जी को ढेरों आशीर्वाद दिए। वज्र के प्रहार से पवनपुत्र के जबड़े की हड्डी टूट गई थी इसी कारण उन्हें हनुमान नाम मिला।
ब्रह्मदेव ने उन्हें ब्रम्हांड के अंत तक जीवित रहने का वरदान दिया और विष्णु जी ने उन्हें आजीवन सबसे बड़ा भक्त होने का वरदान दिया। सिर्फ यही नहीं इंद्रदेव ने उन्हें यह भी वरदान दिया कि अब से उन्हें कोई अस्त्र या शस्त्र चोट नहीं पहुंचा पाएगा।
चौथी कथा
पुराणों के हिसाब से ऐसा माना जाता है कि हनुमान जी शिव जी के अवतार हैं। लेकिन अगर हम आपसे ये कहे कि एक बार हनुमान जी और शिव जी के बीच भयंकर युद्ध हुआ था तो।
पद्मपुराण के पाताल काण्ड के अनुसार श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के दौरान अश्व को छोड़ दिया गया जो दौड़ते दौड़ते राजा वीरमणि के नगर जा पहुंचा लेकिन वहां उसे पकड़ लिया गया।
अगर यज्ञ के घोड़े को कोई रोक ले तो उससे युद्ध करने का नियम था। राजा शत्रुघन ने उस घोड़े को छुड़ाने के लिए युद्ध की घोषणा कर दी। वहीं दूसरी तरफ वीरमणि भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे और इसलिए उन्होंने इस युद्ध को जीतने के लिए शिवजी से मदद मांगी।
शिवजी उनकी मदद करने के लिए तैयार हो गए लेकिन सिर्फ तब तक जब तक श्रीराम खुद युद्ध करने न आ जाएं क्योंकि शिवजी भगवान राम के सामने शस्त्र नहीं उठाएंगे।
शिवजी ने वीरभद्र का रूप ले लिया और युद्धभूमि में आ गए। एक घमासान युद्ध हुआ, जिसमें भरत जी के बेटे पुष्कल की मृत्यु हो गई और शत्रुघन जी बेहोश हो गए। तब श्रीराम की सेना को हारते हुए देख हनुमान जी स्वयं युद्धभूमि में आए।
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उन्होंने एक बड़े से पत्थर से शिवजी के रथ के टुकड़े कर दिए और फिर पत्थर से शिवजी के सीने पर वार किया। इस वार के जवाब में शिवजी ने अपने त्रिशूल को तेजी से हनुमान जी पर चलाया। हनुमान जी ने त्रिशूल को अपने हाथों में लेकर उसके भी टुकड़े टुकड़े कर दिए।
इसके बाद शिवजी ने हनुमान जी पर शक्ति से प्रहार किया। यह शक्ति हनुमान जी के सीने में जाकर लगी और उनका संतुलन बिगड़ गया। क्रोध में आकर उन्होंने पलट कर एक बड़े से पेड़ से शिवजी पर वार किया।
शिवजी के गले में बंधे सर्प डरकर पाताल लोक में चले गए। शिवजी ने हनुमान जी को चेतावनी दी कि अब वे उनका संहार करके रहेंगे और फिर शिवजी ने हनुमान जी पर एक लोहे के मूसल से वार किया।
हनुमान जी ने तब विष्णु जी का ध्यान किया और तेजी से उस मूसल के वार को टाल दिया। हनुमान जी बहुत क्रोध में थे। उन्होंने शिव जी पर पेड़ों और पत्थरों की वर्षा शुरू कर दी। यह युद्ध एक लंबे समय तक चलता रहा और अंत में हनुमान जी की विजय हुई।
पांचवी कथा
आज भी संसार में जब जब राम कथा सुनाई जाती है, तो ऐसा माना जाता है कि किसी न किसी रूप में हनुमान जी वहां उपस्थित होते हैं। पूरी दुनिया में हनुमान जी के ऐसे रूप की पूजा होती है जिसमें उनका पूरा शरीर सिंदूर से ढका होता है।
हनुमान चालीसा के हिसाब से हनुमान जी का कंचन वर्ण है यानि उनका रूप सोने से बना हुआ है। तो फिर उन्हें इस रूप में क्यों पूजा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि वनवास खत्म होने के बाद एक दिन हनुमान जी ने सीता जी को अपनी मांग में सिंदूर भरते हुए देखा। जब हनुमान जी ने माता सीता से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि वे यह सिंदूर राम जी की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ के लिए लगाती है।
हनुमान जी गहरी सोच में पड़ गए। तभी उन्हें एक खयाल आया और वे चुपचाप वहां से चले गए। कुछ देर बाद जब वे राम जी के दरबार में लौटे तो उनका पूरा शरीर सिंदूर से रंगा हुआ था। यह देखकर श्रीराम हैरान हो गए।
जब उन्होंने हनुमान जी से इस बात का कारण पूछा तो उन्होंने अपना सर झुका कर प्रभु से कहा जब माता सीता के एक चुटकी सिंदूर लगाने से श्रीराम की उम्र लंबी हो सकती है तो पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लेने से श्रीराम को कितना लाभ होगा।
हनुमान जी की ऐसी भक्ति देखकर श्रीराम का मन प्रसन्न हो गया। उन्होंने हनुमान जी को वरदान दिया कि जो लोग उनके सिंदूर वाले रूप की पूजा करेंगे उस पर श्रीराम जी का आशीर्वाद हमेशा बना रहेगा।
छटवी कथा
हनुमान जी को चिरंजीवी होने का वरदान मिला था। इस युग में भी हमें कई ऐसे प्रमाण मिले है जो बताते है कि हनुमान जी आज भी हमारे बीच है। लेकिन हनुमान जी का संबंध सिर्फ त्रेता युग की रामायण या कलियुग से नहीं है बल्कि द्वापर युग की महाभारत से भी है।
महाभारत के युद्ध में हनुमान जी ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। महाभारत की कहानी के हिसाब से हनुमान जी ने अर्जुन को यह वरदान दिया था कि वे कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन की सहायता करेंगे।
इसीलिए जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ तो हनुमान जी अर्जुन के रथ पर लगे झंडे पर विराजमान हो गए और युद्ध के अंत तक उन्होंने अर्जुन का साथ दिया।
युद्ध खत्म होने के बाद जैसे ही अर्जुन अपने रथ से उतरे, श्री कृष्ण ने हनुमान जी का आभार प्रकट किया। हनुमान जी ने श्री कृष्ण को प्रणाम कर वहां से प्रस्थान किया। जैसे ही हनुमान जी वहां से गए अर्जुन का रथ जलकर राख हो गया।
यह देखकर अर्जुन चकित रह गए, तब श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया कि पूरे युद्ध में हनुमान जी उनकी और उनके रथ की रक्षा कर रहे थे, जिसके बिना पांडवों का इस युद्ध में जीतना संभव नहीं था।
सातवीं कथा
आज हमारे बीच रामायण के कई रूप मिलते हैं। हर दिशा में रामायण की अलग अलग कहानियां प्रचलित है जिनमें से सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा फेमस है वाल्मिकी रामायण जो ऋषि वाल्मीकि ने लिखी थी।
लेकिन वाल्मिकी रामायण सबसे पहली रामायण नहीं थी बल्कि उनसे भी पहले हनुमान जी ने रामायण को शिला पर अपने नाखूनों से लिखा था जो कि हनुमद रामायण के नाम से जानी जाती है।
कुछ कहानियों के हिसाब से जब ऋषि वाल्मिकी रामायण की कथा पूरी करने के बाद हनुमान जी के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा की हनुमान जी ने हिमालय के पहाड़ों पर अपने नाखूनों से रामायण का अपना संस्करण लिखा हुआ है।
यह देखकर ऋषि वाल्मीकि दुखी हो गए क्योंकि वे जानते थे कि अगर हनुमान जी की रामायण दुनिया के सामने आ गई तो उनकी रामायण का अस्तित्व कम हो जाएगा।
जब हनुमान जी को ऋषि मुनि के दुख का कारण पता चला तो उन्होंने बिना एक पल सोचे अपनी लिखी हुई रामायण को नष्ट कर दिया और रामायण का यह संस्करण हमेशा के लिए गायब हो गया। ऐसे हैं हमारे हनुमान जी।
समापन
तो मित्रों ये थी हनुमान जी से जुड़ी कुछ ऐसी कहानियां जिनके बारे में शायद ज्यादा लोग नहीं जानते। आपको इनमे से कितनी कथा पहले से पता थी हमें कमेंट में जरूर बताइयेगा। जय श्री राम।