साल 2004 एक एवरेज इंडियन फैमिली की सालाना इनकम होती थी 27 हज़ार रुपए से लेकर 50 हज़ार रुपए। और अब आने वाले साल 2024 में एक इंडियन फैमिली की एवरेज इनकम होगी लगभग साढ़े ₹6 लाख रूपये सालाना। यानी कि इन 20 सालों में लोगों की इनकम और उनकी सैलरी ठीक ठाक बढी है।
पर बात तो ये है कि एक भारतीय खर्चों के मामले में और फाइनेंस मैनेज करने के मामले में आज से 20 साल पहले भी अवेयर नहीं था और न ही आज अवेयर है। पहले पूरे 27 हज़ार रुपए खर्च हो जाते थे और कुछ भी नहीं बचता था और आज पूरे ₹6 लाख खर्च हो जाते हैं और कुछ भी नहीं बचता। और यही सबसे बडा रीजन है हम मिडिल क्लास लोगों का अमीरों की कैटेगरी में न आ पाने का।
पर दुनिया के जाने माने और मशहूर ऑथर रमित सेठी ने इस रूल को ब्रेक करके दिखाया और सही गाइडेंस की वजह से वो तो रिच की कैटेगरी में आ ही गए और अपनी लर्निंग को उन्होंने एक अमेजिंग बुक I Will Teach You to be Rich में बताया है जिसने कई लोगों की लाइफ को चेंज करा है। तो आज के इस आर्टिकल में हम इसी बुक के कुछ इम्पॉर्टेंट लेसन को डीकोड करने वाले हैं और लेसन नंबर चार से आप अपने आप को बहुत रिलेट कर पाओगे। तो चलिए बिना देरी के यह लेसन्स जानते हैं ।
1. Strategic Spending: The Conscious Spending Plan
ऑथर रमित सेठी कहते हैं कि हम सबको एक कॉन्शियस स्पेंडिंग प्लान बनाने की जरूरत है ताकि हम पैसों को सही तरीके से सेव भी कर पाएं और लाइफ भी जी सकें। पर दरअसल क्या है ना कि दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं। पहले वो जो एक घंटा कड़ी धूप में पैदल चले जाएंगे, सिर्फ इसलिए क्योंकि ऑटो वाला ₹70 से ₹60 पर नहीं आ रहा है।
और दूसरे वो जिन्हें लगता है कि उन्हें बैंक अकाउंट देखने की जरूरत ही नहीं है। खर्चा करो अगले महीने फिर से सैलरी तो आ जाएगी। यानी एक जो पाई पाई का हिसाब रखता है और दूसरा जो कोई हिसाब ही नहीं रखता। अब इन दोनों तरह के लोगों में प्रॉब्लम सिर्फ एक ही चीज की है, वो है प्लानिंग।
इसलिए ऑथर सजेस्ट करते हैं द कॉन्शस रूल ऑफ स्पेंडिंग। इस प्लान के अंदर आपको अपने सारे कॉस्ट और खर्चे आइडेंटिफाई करने हैं और उन खर्चों में जो खर्चे आपकी लाइफ में कोई वैल्यू ऐड नहीं करते हैं, उन्हें हटा देना है। इस रूल के अकॉर्डिंग आप अपनी मंथली इनकम का 60% फिक्स्ड कॉस्ट के लिए रखेंगे। जैसे कि रेंट, इलेक्ट्रिसिटी, फूड एक्स्ट्रा।
अगला 10% सेविंग्स अकाउंट में डालेंगे, अगला 10 % रिटायरमेंट फंड में डालेंगे और बाकी का बचा 20 % रखेंगे गिल्ट फ्री स्पेंडिंग के लिए। अब गिल्ट फ्री स्पेंडिंग क्या है, इसके बारे में हम लेसन नंबर 4 में डिस्कस करेंगे। अब ऐसा करने से होगा ये कि आप छोटे छोटे खर्चों के लिए कभी परेशान नहीं होंगे और बड़े खर्चे करते टाइम आपके हाथ में एक बजट होगा, एक रिकॉर्ड होगा जो आपको बेफालतू खर्च करने से बचाएगा और आप उन चीजों में अच्छे से स्पेंड कर पाओगे जो आपकी लाइफ में वैल्यू ऐड करें और आपको खुशियां दें।
फॉर एग्जाम्पल ऑथर के एक फ्रेंड ने नौकरी में प्रमोशन के बाद एक सस्ते अपार्टमेंट में शिफ्ट किया, जो बीच के काफी पास था क्योंकि उनके लिए थ्री रूम अपार्टमेंट मैटर नहीं करता था, बल्कि कैंपेनिंग करना और नेचर को एन्जॉय करना उनके लिए ज्यादा इंपॉर्टेंस रखता था। इसलिए सैलरी बढ़ने के बावजूद भी उन्होंने सही से कॉन्शियस स्पेंडिंग का रूल अपनाया और अपने फाइनेंस को सही से मैनेज किया, जिससे उन्हें हैप्पीनेस अपने आप मिल गई।
2. Automation Magic
आज की बिजी लाइफ में चैन से सांस लेने के लिए किसी के पास दो मिनट भी नहीं है और इसी चक्कर में मोस्टली लोग और स्पेशली यंग लोग एक ऐसी गलती कर बैठते हैं जिसका नुकसान उन्हें फ्यूचर में भुगतना पड़ता है, और वो है डिलेड पेमेंट। इसलिए आजकल की मॉडर्न दुनिया में इन्वेंशन हुआ है ऑटोमैटिक पेमेंट का।
देखो एक प्रैक्टिकल बात है पर थोड़ी कड़वी लग सकती है कुछ लोगों को। पैसा सबके पास है इनवेस्ट करने के लिए, सेव करने के लिए, कुछ नया एक्सप्लोर करने के लिए पर खर्चों का कोई हिसाब ही नहीं है, जिसकी वजह से कुछ बचा नहीं पाता। फिर बैठकर रोते हैं कि पैसे नहीं है, सेविंग्स नहीं करी ,इन्वेस्टिंग नहीं कर पाया इत्यादि ।
आजकल की डेट में ऑटोमेशन एक ऐसी चीज बन चुकी है, जो आपकी फाइनेंशियल जर्नी को बहुत आसान बना देती है। आपको बस अपने अकाउंट से ओटीपी का ऑप्शन सेलेक्ट करना है, टाइमली सारे बिल्स और सारी पेमेंट लिंक करनी है।
देखो स्टार्टिंग में सच में लगता है कि महीना आते ही पेमेंट कट जाती है, पर सच मानिये एक टाइम के बाद आपको पता भी नहीं रहेगा और you will get good results . इसलिए ऑथर रमित सेठी सजेस्ट करते हैं कि ऑटोमेटिक पेमेंट और ऑटोमेशन के मैजिक को समझो और उसे अपनी लाइफ में यूज करो। रेंट पेमेंट, बिल पेमेंट, क्रेडिट कार्ड इन सब पर ऑटोमेटिक पेमेंट के थ्रू आप अपने आप को सेफ रख सकते हो। जिससे लेट फीस और पेनल्टी जैसी चीजों का सामना आपको नहीं करना पड़ेगा ।
फिर फ्यूचर ओरिएंटेशन के लिए स्टॉक्स में या फिर इंडेक्स फंड में एसआईपी के थ्रू हर महीने बिना रुके इनवेस्टिंग भी कर सकते हो और वो भी केवल मात्र ₹500 से। मैंने भी अब ऑटोमेशन का सहारा लिया है अपने फाइनेंस को मैनेज रखने के लिए। पहले मैं भी थोडा बहुत डिले कर देता था। पर अब अब तो देखने की जरूरत भी नहीं पडती।
अपने आप अमाउंट इन्वेस्ट हो जाता है और जब मैं पोर्टफोलियो चेक करता हूं तो एक सेंस ऑफ सिक्योरिटी बनी रहती है कि चलो कुछ तो सही हो रहा है पैसों के साथ। तो मैजिक ऑफ़ ऑटोमेशन को जरूर इस्तेमाल करें । एक अफसोस की बात ये है कि इतना सब कुछ करने के बाद भी हम मिडिल क्लास लोग ना बचे हुए पैसों को सही से स्पेंड नहीं कर पाते। जो लेकर चलता है हमारे अगले लेसन पर।
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3.Use Negotiation hacks
दोस्तों ,अक्सर हम लोग क्या करते हैं अपने आप को सुपीरियर दिखाने के लिए जनरल खर्चों में नेगोशिएशन नहीं करते और जो चीज हमें जितने की बताई जाती है, उस प्राइस पर ही खरीद लेते हैं ताकि इन्हें छोटा फील न हो। कोई मोबाइल फोन लेने जाएंगे या कोई व्हीकल तो बिना मोल भाव किए चीजें उठाकर ले आएंगे, क्योंकि वहां नेगोशिएशन करना अच्छा नहीं लगता।
लेकिन इन्हीं लोगों का दोगलापन वहां दिख जाता है, जब ये सब्जी खरीद रहे हों। सब्जी वाले से ₹10 के लिए पूरी नेगोशिएशन करेंगे, पर कोई महँगी चीज़ खरीदते समय या गाड़ी खरीदते समय कुछ नहीं करेंगे। इसलिए रमित सेठी कहते हैं कि अपने लिए बेस्ट डील निकालने में नेगोसिएशन हैक्स का यूज करना चाहिए। फोर एग्जाम्पल सुरेश अभी अभी दिल्ली से मुंबई शिफ्ट हुआ है अपनी जॉब के सिलसिले में।
अब नेक्स्ट टास्क था जुहू में फ्लैट ढूंढना, जहां वह रह सके। तो कुछ दिनों वह होटल में रहा और उसने रूम देखना शुरू भी किया। दो दिन में उसने आठ नौ घर देख भी लिए और फाइनली 10वां घर उसे पसंद भी आया। पर यहां पर लैंडलॉर्ड रेंट बहुत ज्यादा बोल रहा था। पर अब सुरेश के पास इसके अलावा कोई ऑप्शन भी नहीं था क्योंकि नेक्स्ट डे उसकी जोइनिंग थी।
तो सबसे पहले उसने क्या किया कि उस लोकेलिटी में क्या एवरेज रेंट था उसे काउंट किया क्योंकि वह आठ नौ घरों में तो घूम चुका था। फिर सुरेश ने एक कन्वर्सेशन सेटअप करी लैंडलॉर्ड से और अपनी सारी सिचुएशन एक्सप्लेन करी कि 50 हज़ार सैलरी में से अगर आप 20 हज़ार रेंट ले लोगे तो मुंबई जैसे शहर में उसका गुजारा कैसे होगा? उसने यह भी बताया कि वह एक लॉयल और रिस्पांसिबल किरायेदार की हैसियत से रहेगा।
इसी बीच कन्वर्सेशन के बीच में उसने और घरों का भी जिक्र किया, जिससे रेंट इससे बहुत सस्ता था और सुरेश ने डिस्काउंट की डिमांड करी। पर अंकल जी निकले टिपिकल, उन्होंने भी सुरेश को अपनी बताना चालू करी और कहते हैं की मैं 20 हज़ार का 18 हज़ार ही कर सकता हूं।
पर सुरेश ने 15,000 को एक कॉमन अमाउंट डिसाइड किया क्योंकि वही एक एवरेज रेट था सोसाइटी में। सुरेश इसके बाद वॉकआउट करने को भी रेडी था और इसी स्पिरिट ने अंकल जी को पिघला दिया और वह मान गए और सुरेश को बेस्ट रेंट में एक अच्छी और इफेक्टिव एकोमोडेशन मिल गई।
यह था नेगोशिएशन का हैक । देखो यार, मैं आपको चिंदिगिरि करने के लिए नहीं कह रहा। बस यह कह रहा हूं कि जरूरी जगह पर अपने अच्छे डिस्काउंट के लिए कभी भी पीछे मत हटो स्पेशली उन चीजों में जो ज्यादा प्राइस की हैं।
4. Lifestyle Design, Guilt Free Spending
दोस्तों ऑथर कहते हैं, आपको मनी मैनेजमेंट और बजट को कुछ इस तरह सेटअप करना है, जिससे आप मंथली इनकम का 20% अमाउंट अपने गिल्ट फ्री स्पेंडिंग के लिए रख सको। यानी ऐसा खर्चा जिसको करने के बाद आपको सिर्फ हैप्पीनेस महसूस हो, न कि कोई गिल्ट। मैंने अपने आसपास ऐसा बहुत एक्सपीरियंस किया है, जहां लोग पैसा खर्च करने से पहले नहीं सोचते।
पर खर्च करने के बाद उन्हें ज्यादा गिल्ट होता है कि मानो कोई पाप कर दिया हो। देखो यार, सिंपल सी बात है, आप महीने भर मेहनत करते हो, रोज काम करते हो। दिन के आठ नौ घंटे प्रोडक्टिव चीज़े बनाते हो ताकि पैसा कमा सको, अपनी लाइफ बेहतर बना सको।
अपनी फैमिली के लिए, अपने बच्चों के लिए, अपने पेरेंट्स के लिए मेहनत करते हो तो पूरे मंथ में वह एक मूवमेंट तो होना ही चाहिए जिससे आप अपने आप को भी रिवॉर्ड करो, अपने लिए स्पेंड करो, सच्ची खुशी एन्जॉय करो। हम हर एक छोटा बड़ा खर्चा करने से पहले 10 बार सोचते हैं पर जैसे ही सेल्फ रिवॉर्ड के लिए कोई खर्चा किया तो हमें गिल्ट होने लगता है।
ट्रिप पर जाना है, शॉपिंग करना है, अच्छे एक्सपीरियंस गेन करना है इन सभी चीजों पर आप गिल्ट फ्री स्पेंडिंग कर सकते हो। मेरे दोस्त जो गिल्ट फ्री स्पेंडिंग को बहुत अच्छे से निभाता है, वह हर महीने अपने लिए 3 से 4,000 रूपये रखता है, जिसमें वह महीने में एक बार मूवी देखने चला जाता है, फैमिली को डिनर करवाता है और एक्सपीरियंस एंजॉय करता है। और जिस महीने खर्चा नहीं होता, उसे अगले महीने के एक्सपेंस में ऐड कर लेता है, जिससे अगले महीने उसके पास ज्यादा पैसा होता है अपनी गिल्ट फ्री स्पेंडिंग के लिए यानी स्पेंडिंग विदाउट रिग्रेट।
5. The D To C Principle
तो यार बिना गिल्ट के स्पेंडिंग करना और नेगोशिएशन करना तो समझ आ गया, पर कहीं न कहीं हम सबके दिमाग में एक बहुत ही गलत परसेप्शन है कि दूसरा कोई सही काम कर रहा है, कुछ अच्छा कर रहा है या उसकी लाइफ में कुछ बड़ा हुआ है तो हम अपनी जजमेंट और अपना डिस अप्रूवल शुरू कर देते हैं कि यह ऐसा है, वो ऐसा है।
उधर रमित सेठी कहते हैं कि दुनिया की मोस्टली पॉपुलेशन दूसरों को देखकर कुछ सीखने से ज्यादा उसे कोसते ज्यादा हैं अपनी जजमेंट ज्यादा पास करते हैं, बल्कि हमें क्यूरियस होना चाहिए कि सामने वाले ने ये कैसे किया और मैं भी यह कैसे कर सकता हूं। यानी D वर्ड से C वर्ड पर शिफ्ट करो जो है curious होना।
अब जैसे कई लोग एमबीए के लिए यूएस और कनाडा जैसे कंट्री में जाते हैं तो उन्हें देखकर बाकी के लोग कहते हैं कि कुछ नहीं रखा इन सब में सब चोचले बाजी में । वापस लौटकर इंडिया ही तो आ जाना है तो फिर क्या फायदा? यानी किसी के अचीवमेंट को उन्होंने एक फनी टॉपिक बना दिया। ऐसे में एक D to C अप्रोच रखें ।
हमें क्यूरियस होना चाहिए कि उसने अचीव किया तो ऐसा कैसे किया? एग्जाम कहां से प्रिपेयर किया, क्या स्कोर किया, कितनी स्कॉलरशिप मिली, ये सब जानना चाहिए। पर हम लग जाते हैं मजाक बनाने में। अब आप सोचकर देखो अगर बेंजामिन ग्राहम के लेसन को सुनकर, उन्हें पढ़कर अगर वॉरेन बफेट ने सिर्फ उनका मजाक बनाया होता तो क्या आज वो इतने बड़े सक्सेसफुल इन्वेस्टर बन पाते? कभी नहीं ,उन्होंने क्यूरोसिटी दिखाई कि अगर वो कर सकते हैं तो मैं भी कर सकता हूं और उनके लेसन को खुद अपनी लाइफ में अप्लाई करके सीखा। वो फाइनली सक्सेसफुल बन ही गए।
इसलिए हम सजेस्ट करते हैं कि अपने फाइनेंस को मैनेज करने के लिए आप दूसरों को देखकर सीख सकते हो। सिर्फ उनके डिसीजन पर हंसकर उस पर जजमेंट पास करने से कुछ नहीं होगा। पैसा कमाना है, रिच बनना है, बड़ा बनना है तो क्यूरियस होना पडेगा और देखकर सीखना पडेगा। एक और example , बहुत से लोग इनवेस्टिंग को इग्नोर करते हैं, उनके मुताबिक ये एक ऐसी चीज है जो भविष्य में कभी भी की जा सकती है और जो जल्दी शुरुआत करता है उस पर जजमेंट पास करते हैं कि कमाता तो है नहीं, इन्वेस्ट क्या ही करता होगा या फिर ₹150 इन्वेस्ट करने से क्या ही हो जाना है। पर ऐसा नहीं है, कैसे? आइये जानते हैं अगले लेसन में।
6. Invest early and constantly
एक हैं मिस्टर पारिक, इन भाईसाहब को दीन दुनिया से कुछ लेना देना नहीं है। अब क्या है कि भाई पारीख साहब कुछ समय से बेरोजगार घूम रहे हैं। अच्छा खासा वेट भी बढ गया था तो जब उनके फ्रेंड्स उनको काम करने के लिए कहते तो मिस्टर पारिख का सीधा सा जवाब होता कि यार मेरे लायक नौकरी नहीं मिल रही है, सैलरी अच्छी नहीं है, कुछ टाइम बाद जॉब करूंगा।
और हुआ क्या, देखते देखते पांच साल बीत गए। न ही उनकी जॉब लगी और न ही बॉडी बनी और इसलिए क्योंकि वो अपने आप को लेकर और अपने शरीर को लेकर डिनायल में रहते थे। अब सोच के देखो अगर उन्होंने इन पांच सालों में कहीं से फ्रेशर भी काम पकडा होता तो अब उन्हें अच्छा खासा एक्सपीरियंस हो गया होता जो उन्हें एक हेल्दी अमाउंट और सैलरी भी प्रोवाइड करता।
लेकिन नहीं उन्हें तो डिनायल में जीना था और यही सेम सिचुएशन होती है मोस्टली लोगों की इन्वेस्टिंग को लेकर। इनके हिसाब से इन्वेस्टिंग एक ऐसी चीज है जिसको जितना चाहे उतना डिले किया जा सकता है। जब अच्छी नौकरी होगी, अच्छा खासा पैकेज earn करेंगे, ज्यादा पैसा आएगा तो ज्यादा अमाउंट इन्वेस्ट करेंगे, जिससे जल्दी जल्दी अमीर बन जाएंगे।
और अगर आप भी ऐसा सोचते हो तो भाई देखो जिस तरह पांच साल का एक्सपीरियंस आपको एक दिन का काम करके नहीं आएगा, न ही सिर्फ एक हफ्ते की एक्सरसाइज करके बॉडी बनेगी ठीक उसी तरह एक दिन, एक हफ्ते या एक साल में आप अमीर नहीं बन सकते।
उसके लिए आपको ऐसे बीज बोना होगा जो इन लॉन्ग रन यानी 20 -25 साल बाद बडा होकर अच्छा और पके हुए फल देगा। जिसके नीचे आप अपना पूरा बुढ़ापा बिता सकते हो और अपनी फैमिली को भी सिक्योर कर सकते हो। इसलिए ऑथर रमीत सेठी सजेस्ट करते हैं एसआईपी ऑटोमेशन के थ्रू जल्दी से जल्दी अपनी इन्वेस्टिंग जर्नी को शुरू करो।
The Art of Side Hustling
देखो यार कॉन्शस स्पेंडिंग करना, ऑटोमेशन करना, इनवेस्टिंग करना सब सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है और समझ में भी आता है। पर क्या है न समझना और प्रैक्टिकल अप्लाई करने में जमीन आसमान का फर्क होता है। तो देखो दोस्तों मोस्टली इंडियंस और स्पेशली यूथ की तो ये दिक्कत है कि कोई बजट बनाने के बाद ही कुछ स्पेंडिंग करने के बाद भी पैसा नहीं बचता।
लाइफ जीने के लिए, सेविंग करने के लिए, इन्वेस्टिंग करने के लिए कुछ भी नहीं बचता तो इससे अच्छा है की हम द आर्ट ऑफ साइड हसल सीख जाए। आज की डेट में टेक्नोलॉजी ने इतना विशाल रूप ले लिया है कि हर छोटी से बड़ी चीज ऑनलाइन करना आसान है। फिर चाहे वो एजुकेशन हो, वर्क हो या फिर कोई बिजनेस।
इतना सारा कंटेंट और इतनी सारी लर्निंग हैं जिन पर काम करके आप एक स्किल सीख सकते हो और दिन के 3 से 4 घंटे काम करके अच्छा खासा इनकम सोर्स भी बिल्ड कर सकते हो। कंटेंट क्रिएशन, ऑनलाइन मार्केटिंग, बिजनेस फ्रीलांसिंग, ड्रॉपशिपिंग आज की डेट में सीखना बहुत ही आसान है।
ऑफिस से आने के बाद दिन के बस तीन घंटे काम करके आप डॉलर्स में भी कमा सकते हो। तो ये कम्प्लेंट करने वाला बिहेवियर छोडो और अपने फाइनेंस की डोर खुद के हाथों में थामे।
आशा करता हूँ की इस आर्टिकल से आपको कुछ न कुछ जरूर सीखने को मिला होगा।