क्या म्यूचुअल फंड सच में आपको अमीर बना सकते हैं? -Finance In Hindi

Finance In Hindi: दोस्तो आजकल जब भी हम इन्वेस्टमेंट से रिलेटेड चीजें जानने की कोशिश करते है या फिर समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर इन्वेस्टमेंट का कौन सा तरीका सबसे बेहतर है तो हमें म्यूचुअल फंड का नाम सुनने को मिल ही जाता है। लेकिन प्रॉब्लम ये है कि अधिकतर लोगों के मन में डाउट होता है कि क्या सच में म्यूचुअल फंड्स हमें अमीर बना सकता है? म्यूचुअल फंड्स में कंपाउंडिंग होती भी है या लोग ऐसे ही बोलते रहते हैं। 

आये दिन स्टॉक मार्केट ऊपर नीचे जाती रहती है तो ऐसे में म्यूचुअल फंड्स में लोगों का लगा हुआ पैसा भी डूब जाता होगा। इन्वेस्टिंग से पहले लगभग हर बिगिनर्स के मन में यही सवाल बार बार आते रहते हैं। तो आज के इस आर्टिकल में हम इन्हीं सारे प्रशनों की रियलिटी और म्यूचुअल फंड्स में कंपाउंडिंग कैसे काम करती है, इसके बारे में समझेंगे।  


COMPOUNDING in MUTUAL FUNDS


Are mutual funds investing risky?

दोस्तों ज्यादातर लोग जिन्होंने अभी अभी इन्वेस्टिंग की शुरुआत की है या फिर वे लोग जो इन्वेस्टमेंट करने का सोच रहे है अक्सर उन लोगो में पेशंस अर्थात सब्र की कमी देखने को मिलती है और नए इन्वेस्टर्स इसी वजह से मार्केट में आते ही लॉस में चले जाते है। क्योंकि वे ग्रोथ तो मल्टिपल में देखना चाहते है लेकिन उसे टाइम बिलकुल भी नहीं देना चाहते। 

वे अपने पैसे को जल्दी से जल्दी ग्रो करना चाहते है। इस चक्कर में वे म्यूचुअल फंड्स को भी ट्रेडिंग समझने की भूल कर देते है। वे म्यूचुअल फंड्स में भी ट्रेडिंग की ही तरह जल्दी जल्दी खरीदना और बेचना शुरू कर देते है। यही कारण है कि ज्यादातर लोग म्यूचुअल फंड्स को रिस्की कहने लगते है। 

मार्केट में अक्सर उन्हीं लोगो का पैसा डूबता हुआ पाया गया है जिन्हे मार्केट की समझ नहीं होती। इसलिए इन्वेस्टमेंट शुरू करने से पहले मार्केट के बारे में जानना बहुत ही जरूरी होता है। 


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Long-term Investment

Warren Buffet जैसे दुनिया के बड़े बड़े इन्वेस्टर्स लोगो को अक्सर अपनी बुक्स और इंटरव्यूज में यही एडवाइस देते है कि कभी भी इन्वेस्टिंग करो तो लॉन्ग टर्म के लिए करो और ट्रेडिंग जैसे तरीको से तुरंत प्रॉफिट लेने के चक्कर में आप अपने पैसे को कभी भी ग्रो नहीं कर पाएंगे। उल्टा आप का पैसा डूब जाएगा। 

अब दोस्तो ये बात तो क्लियर है कि लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के लिए म्यूचुअल फंड एक काफी अच्छा फाइनेंशियल एसेट है पर वो लाइन तो आपने सुनी ही होगी , "Mutual Funds Investments are Subject to Market Risk, Read All Scheme Related Documents carefully". 

अगर आपका पोर्टफोलियो अच्छा और बैलेंस नहीं है तो आपकी नैया कभी भी डूब सकती है और सालों तक इन्वेस्ट करने के बाद आपके हाथ में कुछ न आये तो आपकी जिन्दगी भर की मेहनत बर्बाद हो सकती है। दोस्तों प्रॉब्लम ये है कि हममें से ज्यादातर लोग past परफॉर्मेंस को देखकर फ्यूचर का रिटर्न कैलकुलेट कर लेते है जो बिल्कुल भी सही तरीका नहीं है। ज्यादातर बिगिनर्स यह ही गलतियां करते हैं।   


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Power of Compounding 

दोस्तों कंपाउंडिंग के बारे में एक कहावत है, कंपाउंडिंग के लिए एक बिग अमाउंट की नहीं बल्कि ज्यादा से ज्यादा टाइम की जरूरत होती है। इसीलिए उसी पर्सन को सबसे ज्यादा और सबसे बेहतर रिटर्न प्राप्त होता है जो सबसे पहले इन्वेस्ट करना शुरू करता है और सबसे बाद में इन्वेस्टमेंट स्टॉप करता है। 

 

FD vs MUTUAL FUNDS

कंपाउंडिंग के इस मैजिक को समझने के लिए आइये एक एग्जामपल को देखते है। मान लीजिये कि दो दोस्त है, एक का नाम है राजू और दुसरे का नाम है श्याम। दोनों ने एक दो साल पहले ही पैसा कमाना शुरू किया है। अब उन्हें लग रहा है कि उन्हें कुछ सेविंग्स करके इन्वेस्ट कर देना चाहिए जिससे उनका फ्यूचर सिक्योर हो सके। 

राजू थोड़ा सा टिपिकल मिडल क्लास फैमिली में पला बढ़ा है, इसलिए उसका मानना है कि स्टॉक्स और शेयर मार्केट फर्जी किस्म की चीजें है। इनमें पैसा लगाना जुआ खेलने जैसा है। न जाने कब आपके पैसे डूब जाए। इसलिए राजू डिसाइड करता है कि वो भी अपने पिता जी की तरह कोई अच्छा सा बैंक, या पोस्ट ऑफिस  देखकर फिक्स डिपॉजिट ही करेगा। 

दूसरी तरफ श्याम की परवरिश थोड़ी सी मॉर्डन माइंडसेट वाली फेमिली में हुई है। इसलिए उसे अच्छी तरह पता है कि स्टॉक मार्केट क्या होता है। उसमें किस प्रकार से लोग अपना पैसा invest करते हैं और किस प्रकार वे ज्यादा से ज्यादा रिटर्न प्राप्त करते हैं। इन सभी की अच्छी समझ होने के कारण श्याम डिसाइड करता है कि वो अपना पैसा SIP के थ्रू म्यूचुअल फंड में निवेश करेगा। 

दोनों ने 2001 से मंथली ₹10,000 इन्वेस्ट करना शुरू कर दिया। 2001 में दोनों ने ₹1,20,000 इन्वेस्ट किए। उस समय सेंसेक्स 3972 पर था। अगले साल यानी कि 2002 में फिर से दोनों ने ₹1,20,000 इन्वेस्ट किए। राजू का पोर्टफोलियो तो लगातार सात पर्सेंट के रिटर्न रेट से बढ़कर 2,56,000 पर पहुंच चुका था, लेकिन 2002  में सेंसेक्स -17.87% घटकर 3262 पर पहुंच गया। 


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इसलिए श्याम का पोर्टफोलियो लॉस में चला गया और उसका 2,40,000 का इनवेस्टमेंट अब रिटर्न के साथ सिर्फ 1,97,000 का ही रह गया। श्याम को डर तो बहुत लग रहा था, लेकिन उसे अच्छी तरह पता था कि म्यूचुअल फंड्स में अच्छा रिटर्न पाना है, तो इस प्रोसेस को लॉन्ग टर्म तक तो फॉलो करना ही पड़ेगा। इसलिए उसने अपनी चिंताओं को शांत करते हुए अपना इनवेस्टमेंट आगे भी जारी रखा। 

2003 में सेंसेक्स 3.52% की रेट से बढ़कर 3377 पर पहुंच गया, लेकिन सेंसेक्स के पॉजिटिव जाने के बाद भी श्याम का पोर्टफोलियो लॉस में ही चल रहा था, क्योंकि अभी तक वो टोटल ₹3,60,000 का इनवेस्टमेंट कर चुका था, जबकि इंटरेस्ट को मिलाकर उसका टोटल रिटर्न सिर्फ 3,28,000 का ही हुआ था। 

इस पॉइंट पर आकर उसके आस पास के लोग बोलना शुरू कर चुके थे कि तुम्हारा सारा पैसा डूब जाएगा। म्यूचुअल फंड्स में कंपाउंडिंग जैसा कुछ नहीं होगा। इसलिए बेहतर यही है कि यहीं पर अपना इनवेस्टमेंट स्टॉप कर दो और पैसे को निकालकर राजू की तरह किसी बढ़िया सी जगह FD कर दो। देखो, तीन साल में उसका पोर्टफोलियो बढ़कर 4,लाख 3 हज़ार का हो चुका है, जो तुम्हारे म्यूचुअल फंड से बहुत ज्यादा है। 

रियलिटी में अक्सर ऐसा ही होता है। ज्यादातर लोग 2 से 3 साल में ही इस प्रोसेस से निराश हो जाते हैं और पैसा डूबने के डर से जल्द से जल्द अपना इनवेस्टमेंट स्टॉप कर देते हैं। इंडिया में अधिकतर लोग जल्दी से जल्दी रिटर्न पाने की इच्छा में म्यूचुअल फंड में इनवेस्ट करते हैं और फिर मार्केट डाउन होते ही डर की वजह से अपना पैसा तुरंत निकाल लेते हैं। इस चक्कर में उनके हाथ कुछ नहीं आता, उल्टा उन्हें एंट्री और एग्जिट फीस में ज्यादा पैसा देना पड़ता है। 

खैर, हमारी कहानी के हीरो श्याम ने यह गलती नहीं की। उसने ओर लोगों की तरह इनवेस्टमेंट को स्टॉप न करके उसे कंटीन्यू रखा।अगले साल जब सेंसेक्स 72.89% की रेट से बढ़कर 5839 पर पहुंच गया और श्याम का पोर्टफोलियो भी अब ₹7,75000 पर पहुंच चुका था। वहीं दूसरी ओर कंटीन्यूअस प्रोफिट में चलने के बाद भी राजू का पोर्टफोलियो अभी सिर्फ ₹5,59,000 पर ही पहुंचा था। 

इनवेस्टमेंट की इस प्रोसेस को दोनों ने अगले चार साल यानी की 2008 तक इसी तरीके से जारी रखा। 2008  में एफडी में इनवेस्टमेंट करने वाले राजू का पोर्टफोलियो बढ़कर 13,03,000 पर पहुंच चुका था, जबकि दूसरी ओर सेंसेक्स 47.15% की रेट से बढ़कर 20287  पहुंच गया और इस वजह से श्याम का पोर्टफोलियो भी बढ़कर ₹39,00,014 पर पहुंच चुका था, जो कि राजू के पोर्टफोलियो से तीन गुना ज्यादा है। जबकि दोनों ही अभी तक ₹9,60,000 का सेम अमाउंट इनवेस्ट कर चुके हैं। 

राजू और श्याम के पोर्टफोलियो के ये तो सिर्फ हमने आठ साल ही कंपेयर किए हैं। उसमें ही दोनों के रिटर्न में तीन गुने का फर्क आ गया और अगर कोई व्यक्ति म्यूचुअल फंड्स में 15- 20 सालों के लिए अपना इनवेस्टमेंट कंटीन्यू रखता है तो फिर उसे करोड़पति बनने से कोई नहीं रोक सकता। क्योंकि जितना ज्यादा टाइम, उतना ज्यादा कंपाउंडिंग का मैजिक भी। 


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Different Types of Funds

म्यूचुअल फंड के थ्रू हम कई प्रकार के फंड्स में अपना पैसा इनवेस्ट कर सकते हैं जैसे इक्विटी फंड, डेब्ट फंड, बैलंस म्यूचुअल फंड, एक्सट्रा। आइए समझते हैं इन फंड्स की क्या खासियत है। इक्विटी फंड यह एक ऐसे प्रकार के फंड है, जिसमें इनवेस्टर का पैसा स्टॉक में इन्वेस्ट किया जाता है। 

इसका ratio 65:35  होता है। यानि कि अपने इनवेस्टमेंट का 65% हिस्सा स्टॉक में इन्वेस्ट किया जाएगा और बाकी का 35% हिस्सा बॉन्ड्स में इनवेस्ट किया जाएगा। म्यूचुअल फंड्स में इक्विटी ही एक ऐसा फंड है, जो बाकी सारे फंड से ज्यादा रिटर्न देता है और इसमें रिस्क भी सबसे ज्यादा होता है। 

अब आते हैं दूसरे फंड पर, जो है डेब्ट फंड। इस फंड में इक्विटी फंड का जस्ट उल्टा होता है क्योंकि इस फंड में इनवेस्टर की टोटल रकम से 65% हिस्से को बॉन्ड्स में इनवेस्ट किया जाता है और बाकी के 35% हिस्से को इक्विटी में इनवेस्ट किया जाता है। 

यह इक्विटी फंड के मुकाबले काफी सेफ होता है क्योंकि इसके थ्रू आपका पैसा गवर्नमेंट बॉन्ड्स में भी इनवेस्ट होता है। लेकिन इसके ग्राफ में फ्लक्चुएशन की कमी होने की वजह से आपको हाय प्रॉफिट होने की संभावना बहुत ही कम रहती है। 

तीसरा फंड है बैलेंस म्यूचुअल फंड। इसका नाम बैलेंस्ड म्यूचुअल फंड इसीलिए रखा गया है क्योंकि इस फंड में आप अपने पैसे को बैलेंस करते हुए शेयर्स और बॉन्ड दोनों में इनवेस्ट कर सकते हो। 

एक तरफ जहां आपको शेयर्स अच्छा रिटर्न दिलाने में कैपेबल होगा, तो दूसरी तरफ बॉन्ड आपको उतनी ही ज्यादा सिक्युरिटी और सेफ्टी प्रोवाइड कराएगा। इस तरह आपको दोनों चीजें मिल जाएंगी, एक अच्छा रिटर्न भी और एक बेहतर सिक्युरिटी भी। 

अगले फंड का नाम है Hedge fund। इस फंड को लिबरल फंड भी कहा जाता है क्योंकि इसमें रूल्स और रेगुलेशंस कम होते हैं। लेकिन इसका सबसे बड़ा एक्सेप्शन है और वो यह है कि इसमें कोई भी रिटेल इनवेस्टर पैसा नहीं लगा सकता। 

इसमें सिर्फ कुछ सिलेक्टेड ग्रुप, हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स ही पैसा लगा सकते हैं। इसके अलावा इस फंड में एक कमी ये भी है कि इसमें इनवेस्टर अपना पैसा तुरंत नहीं निकाल सकते। कम से कम एक साल तक उन्हें हेज फंड्स में अपना पैसा रखना ही पड़ता है। 


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Index Fund 

अब देखते हैं म्यूचुअल फंड का सबसे safest और सबसे ज्यादा suggested फंड जिसका नाम है इंडेक्स फंड। हालांकि इस फंड में भी इक्विटी फंड की ही तरह आपका पैसा शेयर्स में इन्वेस्ट किया जाता है, लेकिन ये उससे बहुत ही डिफरेंट है। 

ऐसा इसलिए क्योंकि इसके थ्रू आपके पैसे किसी खास कंपनी में नहीं बल्कि एक ग्रुप ऑफ कंपनीज के अंदर इन्वेस्ट होते हैं। यानि कि इस ग्रुप के अंदर गवर्नमेंट के द्वारा सिलेक्टेड मार्केट की वो टॉप फिफ्टी कंपनी होती है जो मार्केट में लगातार बेहतर परफॉर्म कर रही है। 

और सबसे अच्छी बात ये है कि अगर किसी कंपनी की परफॉर्मेंस बिगड़ जाती है तो इंडेक्स फंड से उस कंपनी को बाहर निकाल दिया जाता है और उसकी जगह एक नयी कंपनी को ऐड कर दिया जाता है जिसका परफॉर्मेंस पिछली कंपनी से बेहतर चल रहा हो। इस तरह इंडेक्स फंड इन्वेस्टर के होने वाले लॉस को मिनिमाइज कर देता है। 

यही रीजन है कि दुनिया के जाने माने इनवेस्टिंग गुरू वारेन बफे अक्सर लोगों को अन्य फंड्स के मुकाबले इंडेक्स फंड में इन्वेस्ट करने की सलाह देते हैं। इस फंड की एक सबसे अच्छी बात ये भी है कि जहां बाकी सारे फंड्स में आपको फंड मैनेजर पर rely  रहना पड़ता है और उन्हें fee अमाउंट भी ज्यादा देनी पड़ती है, वहीं इंडेक्स फंड में फंड मैनेजर का रोल न के बराबर होता है। इसलिए आप पर लगने वाले चार्जेस या फीस भी बहुत मिनिमम होती है। 

इसके अलावा इंडेक्स फंड के लिए बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि आपके पास मार्केट की अच्छी नॉलेज हो और बहुत सारा पैसा हो। आप इंडेक्स फंड में बिना कुछ जाने अपने घर से ही मोबाइल ऐप के थ्रू ₹500 जैसा छोटा अमाउंट भी इनवेस्ट कर सकते हैं। 

और अगर आप एक फिक्स्ड अमाउंट की SIP कर लेते हैं तो फिर आपको किसी फंड मैनेजर या किसी बैंक के चक्कर काटने की जरूरत नहीं है। क्योंकि हर महीने जो भी अमाउंट आप ने फिक्स कर रखा है वो ऑटोमेटिकली आपके अकाउंट से डिडक्ट होकर इंडेक्स फंड में इन्वेस्ट हो जाया करेगी । 

इस तरह बिना मार्केट को ज्यादा एनेलिसिस किए कुछ सालों बाद आपको एक बेस मिल सकता है जो आपको रिच बनाने के साथ साथ फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट बनाने के लिए भी हेल्पफुल हो सकता है। 

Vinod Pandey

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